लगी। चण्ड शर्मा ने अमीर के आने से प्रथम ही शीघ्रतापूर्वक प्रभास में भेज दिया था। उधर महाराज वल्लभदेव अब खम्भात पहुँच गए थे और उन्होंने सूचित किया था कि आठ जहाज भरकर अन्न वहाँ से जलमार्ग द्वारा प्रभास को भेजा जा रहा है। युवराज भीमदेव बाणबली-अपने कूट मन्त्री दामोदर महता के साथ, अठारह हज़ार सज्जित रणबांकुरे गुर्जर योद्धाओं को लेकर प्रभास आ पहुँचे थे। उनकी अवाई सुन आबाल-वृद्ध हर्षोन्मत्त हो उच्च स्वर से अपनी-अपनी अटारियों पर चढ़कर गुर्जर वीर का आगमन चाव से देखने लगे। आशा और उत्साह की एक अभूतपूर्व उमंग प्रभास में लहराने ज्योंही घोड़ों की टापों से उड़ाई हुई धूल, नगर-जनों को दिखाई दी कि नगर और मन्दिर में ढोल-दमामे बज उठे। मन्दिर के ऊँचे कंगूरों पर चढ़कर लोगों ने देखा-गगनस्पर्शी धूल के समुद्र में शस्त्रों को चमकाते गुर्जर योद्धा धीर-मंथर गति से आगे बढ़े आ रहे हैं। उनके शस्त्र सूर्य की किरणों में चमक रहे थे। निकट आने पर लोगों ने देखा-बाणबली का गजराज अपने सेनापतियों,मन्त्रियों और शरीर-रक्षकों से घिरा हुआ, छत्र-चंवर सहित आगे बढ़ रहा है। उनकी सतेज श्यामल मुख-छवि और गठीले शरीर तथा तेजस्वी आँखों में जो वीरत्व और पौरुष का आभास चमक रहा था, उसे देख हज़ारों कण्ठ एकबारगी ही हर्षा-विह्वल होकर 'जय-जय’ चिल्ला उठे। बाणबली का नगर में धूमधाम से स्वागत हुआ। नगर-जनों ने राजपथ को ध्वजा- पताकाओं से सजाया। गंग सर्वज्ञ ने पुकारकर कहा, “धर्म के शत्रुओं का संहारक आ रहा है, उसका सब कोई यथोचित सत्कार करे।” सर्वज्ञ ने सब प्रधान पौरजनों, सेठ-साहूकारों, समागत धर्माधिकारी महीपतियों, ठाकुरों तथा नेताओं सहित नगर-द्वार पर बाणबली का सत्कार किया। उन्होंने अक्षत, रोली, गन्ध एवं माला से वीर की अभ्यर्थना की। ज्योंही बाणबली ने तोरण में प्रवेश किया, वैसे ही डंकों की गड़गड़ाहट ने उसका जय-जयनाद किया। उस क्षण जैसे प्रभास का धर्म-क्षेत्र वीररस में डूब गया-जैसे साक्षात् भगवान् सोमनाथ शिव-रूप तजकर रौद्र रूप में अवस्थित हो गए। .
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