रात के अंधेरे में कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा का क्षीण चन्द्र आकाश में बांकी छटा दिखा रहा था। सागर स्तब्ध था। आधी रात बीत चुकी थी। इस समय सर्वत्र सन्नाटा था। यत्र-तत्र प्रहरियों की पदचाप सुन पड़ती थी। समुद्र की लहरें तटवर्ती चट्टानों से टकरा रही थीं। सुदूर शत्रु की छावनी की मशालें धुंधली-सी प्रतीत हो रही थीं। कमा लाखानी अपने मोर्चे पर मुस्तैद थे। उनके कान चौकन्ने थे। वे अमीर की चुप्पी से सन्देह में थे। इससे वे बड़ी उत्सुकता और बारीकी से अमीर की गतिविधि पर अपनी गृध्र-दृष्टि जमाए थे। उन्होंने अपने दो सौ कुशल कछुओं को किसी भी क्षण तैयार रहने का आदेश दिया हुआ था। उनके कानों में कुछ असाधारण शब्द सुन पड़े। दूर कहीं बड़ी सावधानी से ठोक- पीट हो रही थी। बीच-बीच में छपाक से किसी के पानी में गिरने का धमाका तथा तैरने का भी सन्देह हो रहा था। उस क्षीण चन्द्र-प्रकाश में साफ-साफ कुछ भी दीख नहीं रहा था। पर उधर किनारे पर कुछ नौकाएँ जमा हो रही हैं ऐसा उन्हें अनुमान हुआ। उनकी दृष्टि एक अंधकारपूर्ण वृत्त पर केन्द्रित हुई। तब उन्होंने समझा कि वहाँ चुपचाप कुछ काली-काली मूर्तियाँ एकत्र हो रही हैं। उन्होंने अपने विश्वस्त नायक जीवन को बुलाकर कहा, “भाया, ऐसा चल कि पैरों की आहट न हो। और जितनी जल्द हो सके सारी बुर्जियों पर तैनात प्रहरियों को सचेत कर दे और सेनापति से कह कि जितने धनुर्धर सम्भव हों, उन सबको जितनी जल्दी हो सके यहाँ भेज दें। सावधान रह, ज़रा भी शब्द न हो, ज़रा भी हलचल न हो। योद्धा मशाल साथ न लावें तथा प्रकाश से बचकर, खाई से सट कर कोट की आड़ में यथास्थान छिपकर मेरे संकेत की प्रतीक्षा करें।" नायक ने तत्क्षण राव की आज्ञा का पालन किया। उसके जाने पर राव ने अपने निकट खड़े एक योद्धा से कहा, “उधर, जहाँ समुद्र खाई में मिलता है, उस आम्रकुंज के अंधकार-वृत्त में तुझे कुछ दिखाई देता है भाया?" "बापू, वहाँ तो बहुत से आदमी इकट्ठे हो रहे हैं, तो क्या कोट पर कोई आक्रमण होगा?" "शत्रु की सेना तो खाई से बहुत दूर है, यह आक्रमण की तो नहीं, किसी दूसरी ही प्रवृत्ति का उद्देश्य दीख पड़ रहा है। राव सोच में पड़ गए। "बापू!” योद्धा ने चिन्तित होकर कहा। "क्या?" "वे जहाज़!" "दूर क्षितिज पर कुछ प्रवहण धीरे-धीरे प्रभास की ओर बढ़ रहे थे। राव ने आँखों पर हाथ रखकर देखा और कहा, “भाया, वह तो अपने ही प्रवहण हैं, अमीर क्या उन्हें पकड़ने का प्रयत्न कर रहा है?"
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