पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/२६०

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"नहीं पुत्र, तुम्हारी भुजाओं पर तलवार का भार है, वही रहे। यह मेरा धर्मानुशासन है, बाधा मत दो। अपनी तलवार सावधानी से मेरे पीछे आओ। फिर गंगा की ओर घूमकर कहा, “गंगा, अब तू?" “जहाँ आपके श्रीचरण।" “गंगा, जा, चौला को देख।" “जिसे देखना मेरा व्रत है, उसे ही देखुंगी, इसके लिए मैंने महासेनापति का राज्यानुशासन भी नहीं माना, आपका धर्मानुशासन भी नहीं मानूंगी।' "तो घड़ी भर यहीं ठहर, मैं अभी आता हूँ। तब चौलुक्य के शरीर की व्यवस्था करेंगे।" गुरुदेव रुके नहीं। मूर्च्छित महाराज भीमदेव का अंग कंधे पर लादकर उस अंधेरी गुहा में बढ़ चले, पीछे नंगी तलवार हाथ में लिए दामोदर महता और बालुकाराय चले। वे चलते चले गए। धीरे-धीरे अंधकार कम होने लगा और वे उन्मुक्त आकाश के नीचे आ खड़े हुए। सामने समुद्र हिलोरें ले रहा था। नौका तैयार थी। महाराज भीमदेव का शरीर नौका पर रख, उन्होंने बालुकाराय और महता को भी नौका पर चढ़ाकर कहा, “पुत्रो, आशीर्वाद देता हूँ। सुखी होओ। यह प्रवाहण खड़ा है, जितना शीघ्र हो, गंदावा दुर्ग पहुँच जाओ। महाराज की रक्षा करना। जाओ, तुम्हारा कल्याण हो।” सर्वज्ञ एकबारगी ही पीछे लौटकर तेज़ी से उस अंध-गुहा में घुस गए। दोनों राजपुरुषों ने उन्हें हाथ जोड़कर प्रणाम किया और उनकी नाव प्रवाहण की ओर बह चली।