उपस्थित होकर चौला की आवश्यकताओं को पूछ लेता। दासियों तथा शोभना को आवश्यक हिदायतें, तथा देवपट्टन के समाचार देता था। देवपट्टन के पतन से वह चिन्तित था, और शोभना की विपत्ति की आशंका से सावधान। और एक दिन जब सन्ध्या-काल में शोभना और चौला समुद्र की उज्ज्वल फेन- राशियों के साथ अस्तंगत सूर्य की अरुण किरणों को क्रीड़ा-विलास करते देखने में मग्न थीं, तभी व्यस्त भाव से चौहान ने वहाँ पहुँच कर सूचना दी, कि महाराज सख्त घायल हुए हैं, एवं महाराज की सवारी खम्भात आ रही है। चौला एकबारगी ही उन्मत्त की भाँति बाहर को दौड़ पड़ी, उसने देखा, सेना की एक छोटी-सी टुकड़ी दुर्ग में प्रविष्ट हो रही है। सबके आगे घोड़े पर सवार नंगी तलवार हाथ में लिए सेनापति बालुकाराय हैं। महाराज के मूर्छित घायल शरीर को चौला के ही कक्ष में लाकर रखा गया। चौला सब लाज-संकोच भूल महाराज का सिर गोद में ले ज़ार-ज़ार दो आँसू बहाती और महाराज के सूखे बालों में अपनी कोमल अँगुलियाँ फेरती रही। भाव-विमोहित हो शोभना भी महाराज के चरणों को गोद में ले बैठी। राजवैद्यों का उपचार जारी था। दुर्ग में हलचल फैल रही थी। सामन्तसिंह दौड़-दौड़कर सब बुों पर सुरक्षा की व्यवस्था कर रहे थे, अब किसी भी क्षण अमीर के खम्भात पर आ धमकने की सम्भावना थी। निराश और उद्वेग का वातावरण सर्वत्र छा रहा था। धीरे-धीरे रात गम्भीर होने लगी। निःस्तब्ध रात्रि में चौला के सान्निध्य में चौला का सुख-स्पर्श पाकर महाराज भीमदेव को चेतना हुई। महाराज ने आँखें फाड़ कर चारों ओर देखा, उनकी दृष्टि चौला के सूखे और मुरझाए मुँह पर अटक गई। उन्होंने क्षीण स्वर से पूछा, “मैं कहाँ हूँ?' परन्तु चौला के मुँह में स्वर अटक गया। वह बोल न सकी। उसकी आँखों से झर- झर आँसू बह निकले। शोभना ने कहा, “घणी खम्मा, अन्नदाता खम्भात में हैं।" "और तुम?" शोभना उत्तर न दे सकी। महाराज की दृष्टि चौला पर अटक गई। उसे पहचान कर महाराज ने कहा, “तुम हो चौला,” उन्होंने हाथ ऊँचा करके अपने बालों में घूमती हुईं चौला की अँगुलियाँ छुईं। चौला ने आँसू पोंछे। “रोती हो, क्या अशुभ हो चुका? यही सम्भव था। किन्तु और सब?" "महाराज...” चौला की हिचकियाँ बँध गईं। “बालुकाराय है?" चौला ने धीरे से कहा, "हाँ, हैं, क्या बुलाऊँ?" "नहीं, और महता दामो?" "वह भी है महाराज।' "क्या मैं यहाँ कई दिन मूर्छित रहा?" "महाराज को आज ही बालुकाराय लेकर आए हैं" “देवपट्टन से?" “नहीं, गंदावा दुर्ग से।” "
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