इतना अधिक विष खा लेने पर भी उनमें से सत्ताईस व्यक्तियों के प्राण नहीं निकले, अत: उन्हें द्वारा अफीम दी गई। जो मृत्यु के निकट पहुँच जाते थे, उनका कष्ट कम हो जाता था। यह देख दूसरे कैदी हर्षित हो उनके कान के पास मुँह करके ज़ोर-ज़ोर से हरिनाम-कीर्तन करते थे। अन्त में दो व्यक्ति अब भी न मरे। उन्हें तीसरी बार फिर अफीम घोलकर पिला दी गई। रात टूट रही थी और वीरात्माओं के शव भूमि पर चुपचाप पड़े वे। उन्हें घेर कर सैकड़ों जन भगवान का वज्र कीर्तन कर रहे थे। जिन दो व्यक्तियों को तीसरी बार विष दिया गया था, उनमें से एक उठ बैठा। उसने अपने साथी के कण्ठ की घुरघुराहट सुनी। अपने साथी की अन्तिम अवस्था निकट जानकर बड़े यत्न और कष्ट से खिसक कर उसके पास पहुँचा, उसे अपनी छाती से लगाकर उसका ललाट चूमा, और इस बार बहुत-सी अफीम और खाकर अपने साथी की बगल में सदा के लिए सो गया।
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