पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/३९४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

कुमार के नाम मिलते हैं। हेमाद्रि के व्रत खण्ड में स्कन्द की पूजा का वर्णन है। सोमनाथ का ज्योतिर्लिङ्ग सोमनाथ के ज्योतिर्लिङ्ग की स्थापना गुजरात में सम्भवतः वल्लभी वंश के राजाओं ने पाँचवी या छठी शताब्दी में की होगी। चन्द्रगुप्त (ई. सन् 410), कुमारगुप्त(416), और स्कन्दगुप्त (ई.स. 456) इन तीनों राजाओं के अतिरिक्त और कोई दूसरा गुप्त राजा गुजरात में उल्लिखित नहीं है। भाट और चारणों के कथनानुसार ईस्वी सन् 470 में स्कन्दगुप्त का स्वर्गवास हुआ और उसके सेनापति मैतृकवंशी भट्टारक ने गुजरात में एक नये स्वतन्त्र राजवंश की नींव डाली, जो तीन सौ वर्ष तक चलता रहा। इसी पुरुष ने वल्लभी नगर बसाया, और उसे अपनी राजधानी बनाया और वल्ल्भी सम्वत् भी चलाया। सम्भवत: यह सेनापति सूर्यवंशी था। इस वंश में लगभग बीस राजा हुए, जिनमें शिलादित्य सप्तम सबसे अन्तिम था। सेनापति भट्टारक-जिसने वल्लभी वंश की स्थापना की, स्वयं शैव था। क्योंकि प्रत्येक वल्लभी ताम्रपत्र पर महादेव के नन्दी की प्रतिमा और भट्टारक का नाम खुदा हुआ है। 18 इस वंश के कुछ राजाओं ने वैष्णव धर्म भी स्वीकार किया और बौद्ध धर्म भी स्वीकार किया। गुहसेन प्रसिद्ध बौद्ध था। उसे परमोपासक कहा जाता है। परन्तु उसके पुत्र- पौत्र सूर्य-पूजक थे, इसलिए उन्हें परमादित्य भक्त कहा गया है। परन्तु पीछे के सब राजा परममाहेश्वर के नाम से विख्यात हैं। मेवाड़ के संस्थापक बाप्पा रावल और उसके वंशज मेवाड़ के राणा, भावनगर के गोहल ये भी वल्लभी वंश की ही शाखाओं में से आए हैं और आज तक भी शिव के पूजक हैं और परममाहेश्वर कहाते हैं। इन प्रमाणों से भी यही साबित होता है कि वल्लभी वंश शैव उपासक था इससे यह अधिक सम्भावना है कि सोमनाथ का सर्वप्रथम निर्माण किसी वल्लभी राजा ने ही किया होगा-सम्भवतः तृतीय शिलादित्य ने अथवा चतुर्थ शिलादित्य ने। सौराष्ट्र आज भी सौराष्ट्र के गाँव-देहातों में घर-घर रमते योगी लोग एक गीत गाते फिरते हैं। उसका अभिप्राय यह है कि सौराष्ट्र में पाँच रत्न हैं-घोड़े, नदी, स्त्री, सोमनाथ और हरि का निवास। इनमें सबसे अधिक प्रसिद्ध सोमनाथ का महालय है,जो काठियावाड़ के दक्षिण समुद्रतट पर स्थित है। आज इस क्षेत्र को काठियावाड़ कहते हैं। परन्तु इससे प्रथम इसका नाम सौराष्ट्र अथवा सौर राष्ट्र था। ‘सौराष्ट्र' का अर्थ है-उत्तम राष्ट्र, और ‘सौर राष्ट्र' का अर्थ है-सूर्य का प्रदेश। सोमनाथ-पट्टन सोमनाथ महालय की भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में गणना है और बारह ज्योतिर्लिंगों में उसका प्रमुख स्थान था। महालय के प्राचीरों को अनेकों बार क्रूर आक्रान्ताओं ने अपने आक्रमणों और अग्नि ज्वालाओं से भस्म किया, परन्तु उनके पीठ फेरते ही उसी भस्म से फिर नवीन देवस्थान का उदय हुआ। इन सारे आक्रमणों में सर्वाधिक प्रबल