पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/३९६

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गया। चौराहे पर फिंकवा दिया। मूर्ति का दूसरा भाग गज़नी की मस्जिद के द्वार के आगे लगा दिया गया है, जिसपर लोग अपने पैरों की धूल और कीचड़ मस्जिद में प्रवेश करने से प्रथम पोंछते हैं।” मन्दिर 56 खम्भों पर टिका हुआ था। प्रत्येक खम्भ मणियों, जवाहरात और बहुमूल्य पत्थरों से सुसज्जित था। प्रत्येक खम्भ पर उसके निर्माता राजा का नाम खुदा रहता था। इन खम्भों की भी सब रत्नराशि उखाड़ कर लूट ली गई। यह भी कहा जाता है कि महमूद मन्दिर के द्वार को, जो चाँदी और चन्दन काष्ठ का बना था, उखाड़ गज़नी ले यद्यपि महमूद ने मन्दिर को भ्रष्ट किया था, किन्तु उसको उजाड़ा नहीं था। उसे उजाड़ा उसके सूबेदार ने, जिसे वह अपने पीछे देश पर शासन करने छोड़ गया था। भीमदेव प्रथम ने ईस्वी सन् 1022-72 में महमूद के जाते ही, नगर को फिर जीत लिया और सोमनाथ की प्रतिमा को पुनःस्थापित किया। सन 1100 में सिद्धराज जयसिंह देवपाटन में श्री सोमेश्वर के दर्शन को आए, और मन्दिर का जीर्णोद्धार कराया। ईस्वी सन् 1169 के लगभग इस मन्दिर को फिर लूटा गया और नष्ट किया गया, क्योंकि ईस्वी सन् 1169 में कुमारपाल ने, जो सिद्धराज जयसिंह के बाद गुजरात के महाराजाधिराज बने, इस मन्दिर का नए सिरे से पुनरुद्धार किया, यह बात सोमनाथ पाटन के भद्रकाली मन्दिर में लगे एक शिलालेख से प्रकट है। लेख से यह भी पता चलता है कि कुमारपाल को उसके जैन मन्त्री हेमचन्द्र ने यह सम्मति दी थी-कि सोमनाथ के मन्दिर का, जिसका कुछ भाग लकड़ी का बना हुआ है और जिसपर समुद्र की लहरों के थपेड़ों से हानि पहुँचती है, शीघ्रता से पुनरुद्वार करे। जब मन्दिर का पुनर्निर्माण हो गया तो मन्दिर के पुजारी बृहस्पति को सोमनाथ पाटन का सर्वाधिकारी बनाया गया, और कुमारपाल ने सपरिवार सोमपाटन आकर लिंगार्चन करके उसकी प्रतिष्ठा की। यह सारा विवरण भी उसी लेख में खुदा है- जिसपर वल्लभी सम्वत् (ईस्वी सन् 1169) दिया गया है। इसके बाद एक शताब्दी तक इस मन्दिर पर किसी ने आक्रमण नहीं किया। ईस्वी सन् 1297 में दिल्ली के खिलजी सुलतान के सेनापति अलफ खाँ ने पाटन पर चढ़ाई की और सोमनाथ को फिर धूलि-धूसरित किया। लिंग को उखाड़ डाला गया, और उसकी जड़ को गहराई तक खोद कर छिपाए हुए खज़ाने की तलाश की गई। शिखर को नीचे गिरा दिया गया और दीवार पर खुदी मूर्तियों को खरोंचकर बिल्कुल अस्पष्ट और अदृश्य कर दिया गया। इसके बाद तो गुजरात पर मुसलमानों के जल्दी-जल्दी अनेक आक्रमण हुए। कुछ ही दिनों बाद अनहिल्लपट्टन के अन्तिम हिन्दू राजा भी निस्संतान मर गए। गिरनार में खुदे लेख के अनुसार इस बार के ध्वस्त सोमनाथ का पुनर्निर्माण ईस्वी सन् 1308-1325 में चूड़ासमा राजा महीपाल देव ने किया, किन्तु उसके जीवनकाल में यह निर्माण पूरा नहीं हुआ। उसके पुत्र खंगार ‘चतुर्थ' ने ईस्वी सन् 1325-1351 में मन्दिर में लिंग की पुनःस्थापना की। इन पिछले आक्रमणकारियों ने प्रतिमा को भंग करके लूटा और चलते बने। उन्हें उस सामग्री से मस्जिद बनाने की बात नहीं सूझी। ईस्वी सन् 1318 में सोमनाथ पर फिर आक्रमण हुआ। ईस्वी सन् 1394 में गुजरात के गवर्नर मुजफ्फर खाँ ने एक प्रबल धर्म-युद्ध पड़ोसी हिन्दू राजाओं के विरुद्ध किया, जिसमें सोमनाथ मन्दिर को नष्ट करके उसकी जगह मस्जिद बना दी। महीमाल देव ने जो कुछ बनाया था, सब तोड़ डाला गया,