विक्रम सम्वत् 1043 के दानपत्र में जो उसके हस्ताक्षर 'श्री मूलराजस्य' हैं, उनकी लिपि भद्दी है, और केवल छह अक्षर होने पर भी सीधी पंक्ति नहीं लिख सका। इससे मालूम होता है कि वह अधिक पढ़ा-लिखा नहीं था। सिद्धपुर का रुद्र-महालय मूलराज ने सिद्धपुर में रुद्र-महालय नाम का एक प्रशस्त शिवालय बनवाया, तथा इसकी प्रतिष्ठा के लिए कुरुक्षेत्र, कन्नौज तथा गौड़ देश से एक हजार ब्राह्मण बुलवाए। और उनको दो सौ तिहत्तर गाँव तथा अन्य जागीरें देकर गुजरात में बसाया था।24 ये गुजरात में उत्तर से आए थे, इसलिए 'औदीच्य' और उनकी संख्या एक सहस्र होने से 'सहस्र औदीच्य' कहलाए। इस समय औदीच्य ब्राह्मणों की गणना पंच द्रविड़ों में होती है। परन्तु देखा जाए तो द्रविड़ों की परम्परा से उनका कोई सम्बन्ध नहीं है। ब्राह्मणों के भेद मूलराज से बहुत पीछे हुए। कुछ लेखकों का यह भी कहना है कि रुद्र-महालय मूलराज के हाथ से पूर्ण नहीं हुआ था, जयसिंह सिद्धराज ने उसको पूरा किया था। मूलराज के एक दानपत्र में, जो विक्रत सम्वत् 1043 का है, यह स्पष्ट लिखा है कि विक्रम सम्वत् 1043 माघ-बदी अमावस्या, सूर्य- ग्रहण के दिन श्री स्थल में रुद्र-महालय देव का पूजन कर कम्बोइका गाँव, मण्डली नगर के मूलनाथ को भेंट किया। 25 इससे स्पष्ट होता है, कि रुद्र-महालय की स्थापना विक्रम सम्वत् 1043 के पहले हो चुकी थी। हेमचन्द्र अपने 'द्वयाश्रय-काव्य' में मूलराज के पुत्र चामुण्डराज का महालय में महाभारत सुनने का वर्णन करता है। यदि महालय की प्रतिष्ठा मूलराज से नहीं हुई होती तो यह सम्भव नहीं था। हेमचन्द्र, जयसिंह सिद्धराज का समकालीन था। रुद्र महालय का मन्दिर भी सुलतान गज़वनी की चढ़ाई के समय तोड़ा गया था, इसके भी प्रमाण हैं और इसका जीर्णोद्धार जयसिंह सिद्धराज ने कराया था। मूलराज ने अनहिल्लपट्टन में भी त्रिपुर-प्रासाद नामक मन्दिर बनवाया था। द्वयाश्रय काव्य में लिखा है कि मूलराज दान-पुण्य करने की इच्छा से अपना राज्य अपने ज्येष्ठ पुत्र चामुण्डराय को सौंप कर सिद्धपुर में जा रहा, और वहीं जीवित अग्नि में प्रवेश करके स्वर्ग को सिधारा।26 मूलराज ने विक्रम सम्वत् 1017 से 1052 तक राज्य किया था। चामुण्डराज मूलराज के पुत्र और उत्तराधिकारी चामुण्डराज के विरुद्ध ‘परम भट्टारक', ‘महाराजाधिराज' और 'परमेश्वर' मिलते हैं। जयसिंह सूरि अपने ‘कुमारपाल-चरित' में लिखते हैं कि, “चामुण्डा के वर से प्रबल होकर चामुण्डराज ने मदोन्मत्त हाथी जैसे सिन्धुराज को युद्ध में मारा।"27 सिन्धुराज मालव के प्रसिद्ध विद्यानुरागी परमारवंशी राजा भोज का पिता तथा मुंज,वाक्पतिराज अमोघवर्ष का छोटा भाई और उत्तराधिकारी था। परन्तु इस घटना का उल्लेख मालव के राजाओं के शिलालेखों और ऐतिहासिक पुस्तकों नहीं है। न गुजरात के इतिहासकारों ने ही इस घटना का उल्लेख किया है। बड़ानगर से
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