52 ने राज्य पाया। कृष्णराज से किसी प्रकार नाराज होकर भीमदेव ने उसे कैद कर लिया।51 जोधपुर राज्य के सुझा नामक पहाड़ पर के देवी मन्दिर की विक्रम सम्वत् 1319 की प्रशस्ति में नान्दौल के राजा बालाप्रसाद चौहान के वर्णन में लिखा है कि उसने राजा भीमदेव की सेवा में रहकर कृष्णदेव को छुड़ाया। भीमदेव का नान्दौल के चौहानों से युद्ध जैसे भीमदेव ने आबू के परमारों को अपने अधीन किया, वैसे ही नान्दौल के चौहानों पर चढ़ाई करके उन्हें अपने अधीन बनाया। नान्दौल राज्य जोधपुर के गौड़वाड़ परगने में है। नान्दौल के चौहान सोंभर के चौहानों की छोटी शाख में से हैं। और इस समय उनके वंश में बूंदी, कोटा और सिरोही की गद्दियां हैं। जोधपुर राज्य के जसवन्तपुर जिले में सूधा नामक पहाड़ पर देवी का मन्दिर तथा वहां विक्रम सम्वत् 1319 का एक शिलालेख मिला है। उसमें नान्दौल के चौहान राजा अनहिल्लराय का वृत्तान्त लिखा है कि उसने युद्ध में भीमदेव की हस्ति-सेना का संहार किया और भोज के सेनापति साढ़ा को मारा।53 सम्भव है कि प्रथम युद्ध में भीमदेव की पराजय हुई हो। परन्तु अन्त में उसे भीमदेव की अधीनता ही स्वीकार करनी पड़ी। भीमदेव और भोज के युद्ध में उसने भीमदेव की सेना के साथ कपट से युद्ध किया था। क्योंकि उसी लेख में उसके पुत्र बालाप्रसाद का भी वर्णन है, कि जिसने राजा भीमदेव की चरण-सेवा कर राजा कृष्णदेव को कैद से छुड़ाया था। अनहिल्लराय का भोज के सेनापति साढ़ा को मारना या तो भोज के सेनापति कुलचन्द्र के अनहिल्लवाड़े पर चढ़ाई के समय की घटना है, या भोज के अन्तिम समय में भीमदेव के धारा नगरी पर चढ़ाई करने से सम्बन्ध रखती है। द्वयाश्रय काव्य में लिखा है कि राजा भीमदेव के शत्रु अस्त हो गए थे, और उनकी कीर्ति यमुना-तट और मगध देश तक फैल गई। उसने नीति का प्रचार किया था। व्यभिचारियों को दण्ड देकर परदार-गमन को रोका था। एक दिन एक दूत ने उसे बताया कि अब सब देश आपके अधीन हैं, किन्तु सिन्धचेदी के राजा आपके शत्रु हैं। उन्होंने आपको नष्ट करने का विचार किया है। सिन्ध के राजा हम्मुक ने शिवशरण को जिताकर अपने पक्ष में मिला लिया है और कई देश उसके अधीन हैं। इस पर भीमदेव ने सिन्ध देश पर चढ़ाई की और सिन्ध नदी पर पुल बँधवाकर सिन्ध को जय किया। हम्मुक को परास्त किया और चेदी पर चढ़ाई की जहां के राजा ने सोना, घोड़े, हाथी और भोज से ली हुई स्वर्णमण्डपिका देकर उससे मित्रता की।54 परन्तु हेमचन्द्र का यह कथन अतिश्योक्तिपूर्ण मालूम होता है। सिन्ध देश पर चढ़ाई करने का उल्लेख तो प्रबन्धचिन्तामणिकार ने भी किया है, परन्तु चेदी पर चढ़ाई करने का उल्लेख नहीं मिला है । राजा कर्ण से उसने स्वर्णमण्डपिका ली तो अवश्य, परन्तु चेदी पर चढ़ाई करके नहीं। हम्मुक, शायद सिन्ध में राज्य करने वाले सुमरावंश का हम्मीर दूसरा हो, जो भीमदेव का समकालीन माना जाता है। ऐसा प्रसिद्ध है कि हम्मुक ने कच्छ देश के मकवाड़ा (झाला) केसर को मारा, जिससे उसका कुँवर हरपाल वहां से भागकर अनहिल्लवाड़े के राजा कर्ण की शरण में आया, जिसने उसको झालावाड़ का इलाका देकर अपना सामन्त बनाया। भीमदेव का शरीर पुष्ट,लम्बा,रोमवाला और रङ्ग कुछ श्याम था। वह अभिमानी,
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