पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/४४

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कहा, "आ जिसमें अनेक प्रकार के बने हुए मांस, मिष्ठान्न और पकवान भरे हैं, मसालेदार शराब से भरे हुए मद्य-पात्र तथा शयन के लिए शय्या भी तैयार है। अमीर ने आश्चर्य से कहा, “लेकिन इसका क्या मतलब है, क्या हम इसके शाही कैदी हैं, कि वक्त पर खाना-बिस्तर मिलेगा, मगर वह बात न करेगा ?" साथी ने कहा, “नहीं, इसका मतलब यह है कि हमें झटपट खाना खाकर कुछ विश्राम करना चाहिए। फिर वह बात करेगा। इस पर दोनों व्यक्ति खाने में जुट गए। भोजन समाप्त कर कोमल शय्या पर आराम करने लगे। दोनों अपने-अपने विचारों में खोए थे। थकावट के कारण उस सुख-शय्या पर उन्हें झपकी आने लगी। अभी झपकी आई ही थी कि उस दैत्य की आकृति गुफा के भीतर से आती हुई नज़र आई। दोनों व्यक्तियों ने दृष्टि-विनिमय किया। इसका यह अभिप्राय था कि हम जिस पुरुष को गुफा के बाहर देख आए हैं, वह भीतर से कैसे निकला आ रहा है। परन्तु बात करने का अवकाश नहीं मिला। उस पुरुष ने वज्र-ध्वनि से सुलतान।" इसपर दोनों पुरुष तलवार हाथ में लिए उसके पीछे गुफा के भीतरी भाग में घुस गए। भीतर गुफा बहुत टेढ़ी-मेढ़ी होकर दूर तक चली गई थी। पिशाच-राज के हाथ में एक दीपक था। उसके मन्द प्रकाश में केवल आगे का मार्ग ही दीखता था, गुफा में और कहां क्या है यह कुछ नहीं। कुछ दूर तक चलकर वह रुक गया, आगे नीचे उतरने की सीढ़ियाँ थीं। उनपर दीपक का प्रकाश डाल उसने सुलतान से नीचे उतरने का संकेत किया। सुलतान ने साथी की ओर देखा। इसपर पिशाच ने कहा, "डरपोक, डरता है।" सुलतान ने तलवार ऊँची की और सीढ़ियाँ उतर गया। उसके बाद उसका साथी भी। उन्होंने देखा, दीपक हाथ में लिए पिशाच भी आ रहा है। सीढ़ियाँ उतरकर वे एक प्रशस्त दलान में पहुँचे, जो बहुमूल्य पत्थरों से बड़ी कारीगरी के काम का बनाया गया था। वहाँ खूब रोशनी हो रही थी। दीपाधारों पर अनेक दीप सुगन्धित तेल के जल रहे थे। चिकने फर्श पर ऐसी सफाई थी कि पैर रपटते थे। सामने महामाया की विशाल मूर्ति थी। इस मूर्ति के वस्त्रालंकार रत्नजटित थे। मुख अतिभव्य था। अर्घ्य पाद्य-नैवेद्य सब स्वर्ण-पात्रों में धरा था। दोनों व्यक्ति आश्चर्य से चकित हो यह दृश्य देखने लगे। फिर उन्हें उस पिशाच का ध्यान आया। उन्होंने पीछे घूमकर देखा तो वह कहीं नहीं था। साथ ही साथ जिस द्वार से अमीर वहाँ आया था, उस द्वार का भी कहीं नामोनिशान न था। वहाँ से बाहर जाने का दूसरा कोई द्वार भी न था। उसने कहा, “यह तो हम चूहेदानी में बन्द हो गए।" “मगर चूहेदानी आरामदेह है, आगे क्या होता है यह देखना चाहिए। यहाँ हमें सिर्फ वह बन्द करने को लाया होता तो यह रोशनी और ठाठ-बाट न होते। अवश्य ही यहाँ हमें कोई अनहोनी चीज़ देखने को मिलेगी।" वह यह कह ही रहा था कि अकस्मात् बहुत-से वाद्य बज उठे। और सम्पूर्ण वातावरण मोहक-संगीत की तान से आपूर्ण हो गया। अभी इनके आश्चर्य की समाप्ति भी नहीं हुई थी कि आश्चर्य में आश्चर्य यह हुआ कि मानो पृथ्वी को फोड़कर मूर्ति के चरणों से एक के बाद एक सुन्दरी षोडशी बालाएँ निकल आईं। कुल नौ थीं। वे नख से शिख तक