पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/४६

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अमीर के निकट आई। पिशाच का स्वर फिर सुनाई दिया, “प्रसाद ले।" युवती ने सोने के प्याले में मद्य भरकर एक-एक दोनों को दिया। दोनों उसे पी गए। मोहनिद्रा टूटने पर दोनों ने देखा, न वह गुफा है, न वह स्थान। वे हिरण्या नदी के उस पार रेती में पड़े हैं उनके अश्व पास ही चर रहे हैं। दोनों उठकर आँखें मलने लगे। नदी के उस पार, अघोर वन की काली चट्टानें प्रभात के सूर्य में चमक रही थीं। उनकी तलवारें उनके निकट पड़ी थीं। अमीर ने कहा, “क्या यह ख्वाब था ?" “ख्वाब कैसा, कल इसी वक्त क्या हमने नदी नहीं पार की थी ?" “की थी।" “और इन्हीं घोड़ों पर उस पहाड़ी तक नहीं गए थे ?" “गए थे।" “तो अब ?" "बात हो गई, चलिए अब।” दोनों ने अपने-अपने अश्व बटेश्वर की राह पर छोड़े। चलने से प्रथम अमीर ने एक कुटिल दृष्टि खाई के उस पार सोमनाथ महालय के गगनचुम्बी शिखर के ऊपर फहराते भगवा ध्वज पर फेंकी। मन्दिर में नगाड़े बज रहे थे।