विद्वान् मुसलमान फकीर अलीबिन उस्मान अलहज़वीसी लाहौर में आया। जो फिर गज़नी नहीं लौटा, और वहीं बस गया। प्रकट में यह औलिया मुस्लिम धर्म का प्रचारक था, परन्तु वास्तव में वह सुबुक्तग़ीन का एक जासूस था, जिसके अनगिन चेले सारे उत्तर भारत में जासूसी जाल फैलाकर बैठ गए थे। इस अभियान में महमूद अपने पिता के साथ था। यद्यपि उसकी अवस्था अभी केवल ग्यारह वर्ष की ही थी, परन्तु वह बड़ा साहसी और युद्धप्रिय बालक था। अपने पिता सुबुक्तग़ीन की मृत्यु के बाद महमूद ने अपनी सत्ता अफगानिस्तान और गज़नी में और मज़बूत की, तथा बुखारे के समृद्ध इलाके अपने अधीन कर लिए, और उस समूचे प्रदेश का एक सर्वशक्ति सम्पन्न सरदार बन बैठा। फिर इसने निरन्तर तीस बरस भारत पर खूनी आक्रमण किए तथा सोलह बार पश्चिमोत्तर भारत को तलवार और अग्नि की भेंट किया। नगरकोट का मन्दिर तोड़कर इसमें से सात सौ मन सोना-चांदी के बर्तन, सात सौ चालीस मन सोना, दो हजार मन चांदी और बीस मन हीरा-मोती जवाहरात उसने लूटे। थानेश्वर के आक्रमण में वह दो लाख हिन्दुओं को कैदी बनाकर ले गया। यहाँ की लूट में उसे एक मानिक साठ तोले का मिला था। मथुरा की लूट में उसने छह ठोस सोने की मूर्तियाँ पाईं, जिनके शरीर पर ग्यारह अमूल्य रत्न थे। मथुरा को उसने बीस दिन तक लूटा और जलाया था। मथुरा से वह इतने कैदी साथ ले गया कि गज़नी में एक-एक गुलाम ढाई- ढाई रुपए में बेचा गया। फिर भी खरीदार न मिले। इस समय उसके साथ एक लाख सवार और बीस हज़ार पैदल थे। इस प्रकार साहसिक अभियानों के कारण उसकी हिम्मत, प्रसिद्धि और समृद्धि बहुत बढ़ गई। और अब इस बार उसने गुजरात की घाटी को चीरकर महामहिम भगवान सोमनाथ के मन्दिर को लूटने और भंग करने का इरादा किया था। निरन्तर सोलह बार उसकी रकाब के साथ भारत को रौंदने वाले बर्बरों ने, जो चाँदी और सोने से अपने घोड़ों की ज़ीने भर कर लौटे थे, उसकी कीर्ति-कथा दूर-दूर तक फैला दी थी। और उसने जो भारत की लूटी हुई यह अनमोल समृद्धि और अटूट सम्पदा ला-लाकर इस उजाड़ देश में बखेर दी, उसने भी उस प्रसिद्धि में चार चाँद लगा दिए थे। इस प्रकार महमूद के इस शौर्य के कारण गज़नी नगर पूर्वी भूखण्ड का एक समृद्ध और प्रसिद्ध नगर बन गया था। नगर में बड़ी-बड़ी मस्जिदें और अनेक प्रासाद, हम्माम और सरायें थी। उसके बड़े-बड़े बारह बाज़ार थे, जिनकी दुकानें देश-विदेश की बहुमूल्य वस्तुओं से भी भरी पड़ी थीं। संसार के व्यापारी वहाँ अपने-अपने देश की वस्तु बेचने आते थे। गज़नी की जामा-मस्जिद स्थापत्य कला की बेजोड़ वस्तु थी। जब उसकी गगनचुम्बी मीनार पर खड़ा होकर मुल्ला पुकार कर “ईश्वर एक है और मुहम्मद उसका प्रतिनिधि है" बांग देता, तो सब कामकाजी मुसलमान काम-धन्धा छोड़कर नमाज पढ़ने को एकत्र हो जाते। सुलतान अपने दरबारी जनों सहित हर शुक्रवार को जब नमाज़ पढ़ने आता, उस समय उसकी सवारी की धूमधाम देखने ही योग्य होती थी। भारत पर विजयी आक्रमण करके वापस लौटने पर सुलतान ने गज़नी में भारी- भारी इमारतें बनवाईं। इमारतें बनवाने का उसे शौक था। इस काम के लिए उसने देश- विदेश के अनगिनत कारीगर और कलाकार बुलवाए थे। उन्हें वह ऊँचे-ऊँचे इनाम देकर उनके उत्साह की वृद्धि करता था। इन गुणी शिल्पियों द्वारा उसने गजनी में ऊँची-ऊँची
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