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पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/८४

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हम आए हैं-अब जैसी महाराज की आज्ञा!" घोघाबापा के नेत्रों में बिजली-सी कौंघ गई। उन्होंने पूछा- "वे कितने हैं?" "दो हैं।" "दोनों क्या म्लेच्छ ही हैं?" “एक हिन्दू है।" “क्या राजपूत है?" “नहीं, हज्जाम है, पर कहता है वह दुभाषिया है। अमीर के दरबार में उसकी प्रतिष्ठा है।" "और दूसरा?" गया। “वह एक तरुणा तुर्क सेनापति है।" कुछ देर घोघाबापा चुपचाप सोचते रहे, फिर धीरे से बोले, “उन्हें बुलाओ।" दोनों दूतों ने आकर घोघाबापा को प्रणाम किया। हज्जाम ने आगे बढ़कर हीरों से भरा हुआ थाल घोघाबापा के चरणों में रख दिया और पीछे हट हाथ बाँध कर खड़ा हो घोघाबापा ने थाल पर, हज्जाम पर और उसके पीछे खड़े तरुण तुर्क पर एक दृष्टि डाली। तरुण की अवस्था तीस वर्ष की होगी। वह एक गौरवर्णी तेजस्वी युवक था। उसकी आँखों में घमण्ड भरा था। उसका अंग गठा हुआ था और वह बहुमूल्य वस्त्र पहने था। घोघाबापा को अपनी ओर ताकते देख उसने शुद्ध तुर्की भाषा में कहा, “आपकी शूरवीरता और बुजुर्गी पूजा के योग्य है। गज़नी के अमीर अमीनुद्दौला महमूद ने यह तुच्छ भेंट अपनी मित्रता के उपलक्ष में भेजी है। कुबूल फर्माकर ममनुन कीजिए।" तिलक ने अनुवाद कह सुनाया। घोघाबापा के मुँह से बात नहीं निकली। केवल मूंछे फड़क कर रह गईं। दोनों दूत सन्देह में पड़ गए। नन्दिदत्त ने अवसर देखकर पूछा, “अमीर क्या चाहता है?" “आप मरुस्थली के महाराज हैं, अमीर मरुस्थली में होकर प्रभास जाने की इजाज़त चाहता है?" युवक ने कुछ विनय और कुछ दबंगता से कहा। हज्जाम ने अनुवाद सुना दिया। बापा ने तरुण की ओर संकेत करके पूछा, “वह कौन है?" “महाराज, यह अमीर के सिपहसालार मसऊद हैं,” हज्जाम ने हाथ जोड़कर कहा-“अमीर की ओर से विनय करते हैं।" “विनय?” घोघाबापा ने धीरे से कहा। और फिर घूमकर उस घमण्डी युवक को देखा, जो तलवार की मूठ पर हाथ रखे तना हुआ खड़ा था। “विनय,” घोघाबापा ने सिर हिलाया और हंस दिए। तिलक बद्धांजलि खड़ा रहा। मसऊद अपनी पूरी उँचाई में तन गया। बापा ने कहा, 'तो अमीर मुझसे पट्टन जाने का मार्ग माँगता है?" "हाँ महाराज।”