अनहिल्ल–पट्टन ईसवी सन् 720 में उत्तर गुजरात में चावड़ा वंश की स्थापना हुई। इस वंश ने पंचासर में अपनी राजधानी स्थापित की। पंचासर कच्छ की मरुभूमि के छोर पर एक छोटा-सा नगर था। इससे प्रथम चावड़ा वंश के पुरुष सौराष्ट्र की सीमा पर देवपट्टन में रहते और समुद्री लुटेरों का धन्धा करते थे। जिन दिनों चावड़ा वंश ने प्रथम बार उत्तर गुजरात में राज्य स्थापना की, उन दिनों काठियावाड़ में बल्लभीपुर समृद्ध नगर था। वहाँ बल्लभीवंश के राजाओं का प्राचीन राज्य था। दक्षिण गुजरात में चालुक्य, गुर्जर तथा राष्ट्रकूटों के छोटे- छोटे राज्य थे। काठियावाड़ में भी जाड़ेजा तथा चुड़ासभा वंश के छोटे-छोटे राजा राज्य कर रहे थे। चावड़ा वंश के जयशिखर नाम के वीर और साहसी व्यक्ति ने पंचासर में चावड़ा राज्य की स्थापना की। वह बलवान और तेजस्वी पुरुष था। शीघ्र ही उसकी कीर्ति आसपास फैल गई। उसकी यह कीर्ति चालुक्यराज भूवड़ से सहन नहीं हुई। उसने भारी सैन्य ले जयशिखर पर आक्रमण किया। इस युद्ध में जयशिखर खेत रहा और रूपवती गर्भवती रानी रूपसुन्दरी भाग कर अपने भाई सुरपाल के आश्रय में चली गई। शत्रु के भय से सुरपाल अपनी गर्भवती बहिन को लेकर जंगल में जा छिपा। वन ही में रानी ने पुत्र प्रसव किया। उसका पालन उसके मामा ने बड़े यत्न से किया। वन में जन्म लेने से उसका नाम 'वनराज' प्रसिद्ध हुआ। बालक वनराज को उसके मामा ने शस्त्र-शास्त्र की उत्तम शिक्षा दी। आयु पाकर वनराज वीर, साहसी और तलवार, तीर तथा अन्य शस्त्रों के संचालन में अप्रतिम योद्धा बन गया। अश्व-आरोहण में भी उसकी कोई समता न कर भूवड़ राजा ने गुजरात जीत कर उसकी आय अपनी पुत्री मीनलदेवी को अर्पण कर दी थी। मीनलदेवी का दीवान गुजरात पर शासन करता और उसकी आय मीनलदेवी के पास भेज देता था। वनराज ने आसपास के जंगली भीलों और नागों एवं मियानों तथा अपनी जाति के युवकों को लेकर एक मज़बूत गुट बनाया, और गुजरात के गाँवों में डाके डालना और लूटमार करना प्रारम्भ कर दिया। शीघ्र ही वनराज का आतंक देश-भर में फैल गया। पर वनराज कौन है यह कोई नहीं जान सका। एक अवसर ऐसा आया कि मीनलदेवी के आदमी देश की आय का कोष लेकर मीनलदेवी के पास जा रहे थे। वनराज ने धावा मारकर वह सब खज़ाना लूट लिया। इस लूट में उसे चौबीस लाख मोहरें और चार हज़ार घोड़े हाथ लगे। घोड़े उसने अपने साथियों को बाँट दिए, तथा धन से उसने नई सेना इकट्ठी करके उसे भली-भाँति शस्त्र-सज्जित किया। और उसी वन में उसने अनहिल्ल पट्टन नगर बसाना प्रारम्भ कर दिया। थोड़े ही दिन बाद उसने उस नव-निर्मित नगर में अपना राज्याभिषेक कर अपने को गुजरात का राजा घोषित कर दिया। शीघ्र ही उसने गुजरात से मीनलदेवी के दीवान को खदेड़ दिया और अपने नाम का डंका बजवा दिया। उनचास वर्ष की आयु में सकता था।
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