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सौ अजान और एक सुजान

शिक्षा, विज्ञान, चातुरी और फिलासफी सब उलटा ही असर पैदा करती हैं। उपदेश और विद्याभ्यास, दोनो इसीलिये है कि आदमी को बुरे कामों की ओर से हटाय भले कामों मे लगावे । यह एक प्रकार का ऐसा स्नान है, जो शरीर के नहीं, वरन् मन के मैल को धोकर साफ कर देता है। इस पुनीत तीर्थोदक में एक बार भी जिसने भक्ति-श्रद्धा से स्नान किया, वह जन्म-भर के लिये शुद्ध और पवित्र हो जाता है । और, इस तार्थोदक से स्नान का उपयुक्त समय यही था। सेठजी-से बुद्धिमान् यह सब सोच-समझ तुम्हें मेरे सिपुर्द कर आप निश्चिंत हो बैठे थे। मैंने पहले ही कहा कि श्रद्धा इसके लिये पहली बात है। जब उसमें कमी देखी गई, तो मै अलग हो गया। फिर भी सेठजी का पूर्व-उपकार समझ जी न माना, इसलिये आज फिर मैंने तुम्हें एक बार और चिताने का साहस किया। आशा है, अब आप मेरे इस कहने पर कान देगे, और अपने काम-काज मे मन लगावेगे।

"तुम्हें चाहिए कि तुम ऐसे ढंग से चलो कि भले मनुष्यों में तुम्हारी हॅसी न हो; बड़े लोग तुम्हें धिक्कारे नहीं; तुम्हारे हितैषी तुम्हारा सोच न करे; धूर्त भॉड़-भगतिए तुम्हें ठगे नही; चतुर सुजान तुम्हारा निरादर न करे;खु़शामदी लोग अपने कपट-जाल में तुम्हें फॅसाय शिकार न वनावे; ओछे और टुच्चों की सोहवत से दूर हटते रहो । बुद्धिमान् लोग कह गए हैं–