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सौ अजान और एक सुजान

उज्ज्वल होने की ओर ख्याल दौड़ा। तात्पर्य यह कि एक बात में भी जहाँ ज़रा-सी तरहदारी और अच्छेपन को जगह दी गई कि वह रुई की आग हो जाती है। किसी ने सच कहा है—

एक शोभा के लिये मन मारा,
तो किया अनेक पीड़ा से निस्तारा।

"बाबू, तुम समझते हो सदा दिन ही रहेगा, रात कभी होगी ही नहीं। बड़े सेठ साहब कितनी मेहनत और उद्योग से तुम्हारे लिये कुबेर की-सी संपदा संचित कर गए हैं। तुम्हारी सपूती इसी में है कि तुम उसे बनाए रहो। तुम कहोगे, यह जाति का दरिद्र ब्राह्मण अमीरी की क़दर जाने क्या! पर मैं कहता हूँ, वह अमीरी किस काम की, जिससे पीछे, फक़ीरी झेलनी पड़े। सच है—

धनवंतों के घर के द्वार।
सब सुख आवै बारबार।
जिसके होवै पैसा हाथ,
उसका देवैं सब कोई साथ।
उद्योगी के घर पर अड़ी
लक्ष्मी झूमें खड़ी-खड़ी।

"धनी के पास सब आते हैं, वह किसी को ढूँढ़ने नहीं जाता। कहा है—

प्यासा ढूँढै मीठा कूप;
कूप न ढूँढै प्यासा भूप।