बाग़ के उजड़ जाने पर उसमें कटीले पेड़ का एक ठूठँ बच रहे। मानिकपुर भी उजड़कर कसबे से एक छोटा-सा पचास घर का पुरवा रह गया। सिवाय इस बुड्ढे के मानिकचंद की लड़कियों के संतान में भी एक आदमी बच रहा था । नाम इसका मिट्ठल, मानो नहूसत और दरिद्रता का एक पुतला था। इस बुड्ढे के घर से अलग एक दूसरे कच्चे मकान में यह रहा करता था। शकल से महादिहाती ग्रामीण मालूम होता था। न केवल सूरत ही शकल से यह दिहाती था, वरन् शऊर और ढंग भी इसके सब दिहातियों के से थे। दस-पॉच बिगहे की खेती करता था, और वही इसकी आजीविका थी। कभी-कभी अर्थ-पिशाच वह बुड्ढा भी इसकी कुछ सहायता कर देता था। रिश्ते में वह उसका भानजा लगता था । नाम इस यक्षवित्त कृपण बुड्ढे का धनदास था। धनदास कुछ तो बुढ़ापे के कारण, जब कि और सव इंद्रियाँ शिथिल हो केवल तृष्णा और लोभ ही को विशेष बढ़ा देती हैं, और कुछ इस कारण से भी कि इसकी बारी फुलवारी बिलकुल उजड़ गई थी, ठूठॅ-सा अकेला आप ही बच रहा था, लड़के, पोते, नाती, अपनी स्त्री तक को इसने फूँके तापा था, इसलिये इसका जी सब भाँति बुझ गया था, और कभी किसी बात के लिये हौसिला ही नहीं उभ- ड़ता था। सॉप-सा खाट बिछाए उसी संदूक के पास पड़ा रहता था, जिसमें इसके सब काग़ज, पत्र, रुपया पैसा, नोट इत्यादि रक्खे हुए थे। सिवाय थोड़ी-सी पुराने फैशन की फारसी के
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