पृष्ठ:सौ अजान और एक सुजान.djvu/९६

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पंद्रहवाॅ प्रस्ताव


लंबी नाक, नीचे को झुके हुए छोटे-छोटे मोंछे, पस्त क़द, पेट के ऊपर दोनो खड्डेदार छाती-जैसा किसी गहरी नदी के ऊपर आगे की ओर झुका हुआ कगारा हो। बाल सुफेद हो चले थे, पर जुल्फ सदा कतराए रहता था। अस्तु, आज के जलसे में यह भी शरीक था । वहाँ हुमा को देख वह बोला-"बाबू ऋद्धिनाथ, तुमने ऐसा चुंबक पत्थर अपने पास रख छोड़ा है कि किस पर इसकी कोशिश का असर नहीं पहुंच सकता ? ठीक है, ऐसी सोने की चिड़िया आपके हाथ लगी है, तभी तो आपने हम लोगों को बिलकुल भुला दिया।"

ऋद्धिनाथ-खैर, गड़े मुरदे न उखाड़िए, बतलाइए, अब आप लोगों की क्या खातिरदारी की जाय (जूही का एक- एक गजरा सबों के गले में छोड़)। चलिए, आप लोगों को बाग़ की सैर करा लावे (एक बड़ी भारी संदूक दो कुलियों के सिर पर लदाए हुए रग्घू को दूर से आता देख ) । लाओ- लाओ, अच्छे वक्त से लाए।

सब लोग-'यह क्या है ? यह क्या है ?" (संदूक खोल सब लोग एक-एक बाजा उठा लेते हैं)-वाह रे । रग्घू महाराज, अच्छी जून यह तुहका तुम लाए, और क्या हिसाब से लाए कि डेढ़ कोड़ी बाजे और यहाँ डेढ़ ही कोड़ी बाजे के बजवइए भी।

नंदू-(ऋद्धिनाथ से) बाबू साहब, हमने कहा था, बाजे