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स्कंदगुप्त
प्रख्यात०--पर अभी तो कुछ दिन ठहरोगे?
धातुसेन–-जहाँ तक संभव हो, शीघ्र चलो।
( एक भिक्षु का प्रवेश )
भिक्षु--आचार्य्य! महान अनर्थ!
प्रख्यात०--क्या है, कुछ कहो भी?
भिक्षु--विहार के समीप जो चतुष्पथ का चैत्य है, वहाँ कुछ ब्राह्मण बलि किया चाहते हैं! इधर भिक्षु और बौद्ध जनता उत्तेजित है।
धातु०--चलो, हम लोग भी चलें--उन उत्तेजित लोगों को शान्त करने का प्रयत्न करें।
[ सब जाते हैं ]
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