पृष्ठ:स्कंदगुप्त.pdf/१३३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
स्कंदगुप्त
 


प्रख्यात०--पर अभी तो कुछ दिन ठहरोगे?

धातुसेन–-जहाँ तक संभव हो, शीघ्र चलो।

( एक भिक्षु का प्रवेश )

भिक्षु--आचार्य्य! महान अनर्थ!

प्रख्यात०--क्या है, कुछ कहो भी?

भिक्षु--विहार के समीप जो चतुष्पथ का चैत्य है, वहाँ कुछ ब्राह्मण बलि किया चाहते हैं! इधर भिक्षु और बौद्ध जनता उत्तेजित है।

धातु०--चलो, हम लोग भी चलें--उन उत्तेजित लोगों को शान्त करने का प्रयत्न करें।

[ सब जाते हैं ]

128