पृष्ठ:स्टालिन.djvu/३२

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इक्कतीस] पादरी को उपाधि धारण करूं अथवा अपनो शिक्षा को यहीं पर समाप्त कर जोवन का दूसरा प्रोग्राम बनाऊं, जो वाखाव में मेरी स्वाभाविक प्रवृति के अनुकूज हो। उसको विचारधारा अपने माता पिता को पार गई। उस पिता को मोर, जिसको आयु भर कठोर परिश्रम करना पड़ाथा और उसे माँ को जिसने अपूर्ण नेत्रों से अपने पुत्र से कहा था कि "पुत्र ! त हो हमारे जोवन में सुदिन ला सकता है। जब तू पाइरो बन कर निकलेगा तब ही हमारे दिन फिरेंगे।" बहुत सोच विचार के पश्चात् वह इस परिणाम पर पहुंचा कि उसके लिये पाठशाला में एक वर्ष मोर शिक्षा प्राप्त करना अपम्भर है। प्रोफेसरां को यह मालूम हुआ कि पापपूर्ण विचारों ने विद्यार्थियों को आत्माओं को अपवित्र बना दिया है तो उन पर कुछ कठोर प्रतिबन्ध लगा दिये, जिनके कारण जोज के के लिये अधिक समय तक ऐसे स्थान में रहना असम्भव प्राय हो गया। इसके बहुत समय पश्चात् सालिन ने एक प्रसंग पर व्याख्यान देते हुए अपने जोवन के इस भाग के विषय में निम्न विचार प्रगट किये। "वहां हमको हर समय अपमानित किया जाता था। हर अवसर पर हमको यह बात महसूस कराई जावो थो कि विद्रोही व्यक्ति हमारे बीच में मौजूद हैं। जिस समय बजे प्रातः हम भोजन के लिये अपने कमरों में से निकलते वो हमारी अनुपस्थिति में प्रोफेसर हमारे बक्सों और अरमारियों को बलाशी लेते।" इस परिस्थिति में वही हुआ जिसको संभावना थी। जाक की पाठशाना छोड़ देनी पड़ो। इस सम्बन्ध में पाठशाना के रजिस्टर में निम्न लिखित शब्द भंकित - "चूकि जाक बसारिया नोवच राजनैतिक पहबन्न कारियों से मिलने लगा है और उनके रंगों में रंगा जा रहा है,