पृष्ठ:स्टालिन.djvu/६

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प्रस्तावना यद्यपि कहने के लिये रूस यूरोप के इस द्वितीय, महायुद्ध में एक तटस्थ राष्ट्र है, किन्तु वास्तव में यदि प्रत्यक्ष नहों को अप्रत्यक्ष रोति से वह किसी भी लड़ाकू राष्ट्र के मुकाबले युद्ध में कर्म भाग नहीं ले रहा है। जिस प्रकार महाभारत में भगवान कृष्ण ने स्वय शस्त्र न पकड़ने पर भी सबसे अधिक उत्साह से युद्ध में भाग लिया था, उसी प्रकार रूस भी बाज स्वयं लड़ाकू राष्ट्र की परिभाषा में न आने पर भी वर्तमान युद्ध में अत्यन्त महत्वपूर्ण भाग ले रहा है। हमने अपने एक पिछले ग्रंथ 'हिटलर महान' में कहा था कि नात्सीवाद भौर साम्यवाद एक दूसरे के चिरंवन शत्रु हैं एवं उनमें उसी प्रकार मित्रता असम्भव है, जिस प्रकार चूहे और बिल्ली में मित्रता होनी असम्भव है। किन्तु २२ अगस्त १९३६ को सारे संसार ने अत्यन्त पाश्चर्य के साथ रूस और जमेनी की संधि समाचार को सुना। किन्तु हमारी सम्मति अब भी वही है जो 'हिटलर महान्' लिखते समय थी। हमारी सम्मति में रूस जर्मनी की उक्स संधि हार्दिक मित्रता नहीं, वरन दो स्वार्थियों को एक राजनीतिक पान थी। अपने एक दूसरे ग्रंथ 'राष्ट्रनिर्माता मुसोलिनी' में हमने बतलाया था कि फासिस्टबाद, नात्सीवाद अथवा साम्यवाद तीनों के ही डिक्टेटरों के स्वार्थ एक से मतः वह एक राजनीतिज्ञ चाल के लिये कभी भी एक हो सकते हैं। अपना पिछला ग्रंथ 'हिटलर और युद्ध' लिखते समय हमारे सामने वास्तव में यही स्थिति थी। अर्थात् संसार भरके रिक्टेटर अपने २ स्वार्थों की सुरक्षा के लिए संसार के सबसे बड़े साम्राज्यवादी देश ब्रिटेन के सामाप में हिस्सा बांटने के विचार से एक हो गए। और