सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:स्टालिन.djvu/७४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

विहचर] निराश होकर लेनिन के भादमियों ने दूसरी पार्टी से पूल-वाब भारम्भ की। उन्होंने जर्मनी से पूछा कि क्या वह लोग उनको और उनके नेता लेनिन को रूम में प्रविष्ट होने की अनुमति देंगे? पाशा के प्रतिकूल भी जर्मनों ने सहायता देना स्वीकार कर लिया। प्रारम्भ में जर्मनों का अनुमान था कि मध्य श्रेणि की कांति वाला रूस इस महायुद्ध से अवश्य ही प्रथा हो जावेगा और जब रूस युद्ध में भाग लेना छोड़ देगा तो जर्मनी और प्रास्ट्रिया की महान सेनाएं जो रूसी सीमा को लोहे कि दीवार की भांति धेरे खड़ी थी, उधर से स्वतंत्र होकर पश्चिमी युद्ध श्रेन को भेजी जा सकेंगी और वहां उनसे अंग्रेजों और फ्रांसी- सियों के विरुद्ध काम लिया जा सकेगा। लेकिन अब उन्होंने देखा कि कैरनस्की जर्मनों के विरुद्ध युद्ध जारी रखने के लिये प्रत्येक सम्भव साधन जुटा रहा है। इस दशा में उन्हें यह उत्तम जान पड़ा कि कैनस्की की अर्ध-क्रान्तिकारी, अर्द्धसामन्त-प्रधान हकूमत के स्थान पर अधिक क्रान्तिकारी दल को शक्तिशाली बनने में सहायता दी जावे। इस तरह की प्रबल कान्तिकारिणी सरकार शीघ्र युद्ध बन्द करके केन्द्रीय शत्तियों के साथ प्रथक सन्धि कर लेगी। इस अभिप्राय के लिये लेनिन की णि ही सब प्रकार से उपयुक्त थी। जर्मनों को विश्वास था कि लेनिन के सत्ताधारी होने पर रूस और जर्मनी के झगड़े की समाप्ति हो जावेगी। उधर लेनिन ने विचार किया कि "यदि मैं जर्मनों की सहायता से रूस में प्रविष्ट हुआ वो मेरी श्रेणि पर जर्मनी का ऐसा भारी श्रण होगा जिस से मुक्त होना कठिन हो जावेगा। इसके अतिरिक्त सदा के लिये मेरे माथे पर कालिमा का टीका लगा रहेगा कि जमेनों का समर्थन प्राप्त करके कैनस्की से अधिकार छीने। इसके पश्चात् यदि