1 सवाचर] युद्ध भारम्भ होगया। कैरनस्की के मंडे के नीचे असंख्य सेना थी। किन्तु युद्ध करने का साहस किसी में भी शेष नही रह गया था। उनमें से भी लगभग दस लाख व्यक्ति बोल्शेविक प्रचार के प्रभाव से सरकार का साथ छोड़ बैठे थे। राजधानी में भी आन्दो- लन जारी था। क्रान्तिकारी लोग नारियों में बैठे नगर के बाजारों में घूमते थे। उनकी नान मंडियां हवा में फहराती हुई इन शब्दों को प्रकट करती थी "प्रथम गोली कैरनस्की के वक्षस्थल में!" कैरनस्की ने देखा कि शासन-नैय्या विपत्ति-भंवर में पड़ गई है। उसने उसे मंझधार से निकालने का अन्तिम यल किया। और वह इस प्रकार कि उसने लेनिन और उसके साथियों पर आक्षेप किया कि "यह लोग नया भान्दोलन केवल इस लिये चलाना चाहते हैं कि देश का सीमा-द्वार जर्मनी के लिये खोल दिया जावे।" इस अपवाद से लेनिन चिन्ता में पड़ गया। अब उसके लिये केवल दो ही मार्ग थे। या तो न्यायालय में उपस्थित होकर इस अभियोग का खंडन करे और जिस प्रकार भी संभव हो अपनी सफाई पर जोर दे अथवा देश से भाग जावे। अब तीनों व्यक्ति लेनिन, स्टालिन और ट्रॉट्स्की जो इस समय अमरीका से आ चुके थे-परस्पर सलाह करने बैठे। वह इस परिणाम पर पहुंचे कि देश से भाग जाने में ही करालता है। उन्होंने सोचा कि अभी उनका समय दूर है। कैरनस्की की शक्ति अधिक है और उनको कुल समय और प्रतीक्षा करनी चाहिये। यह निश्चय होते ही लेनिन ने फिनलैंड में शरण ली। किन्तु ट्रोदकी और लोनाचरस्की कैरनस्की के हाथ पड़ गये और कैद कर लिये गये । अब केवल स्टालिन ही बचा, जो स्वतंत्रता-पूर्वक सेंट पीटसे वर्ग के अन्दर भानन्द से अपना कार्य कर रहाथा कान्ति के उन स्वर्णमय ऐतिहासिक दिनों में स्टालिन ने फिर एक