बनता, फिर हम यह भी देखते हैं कि जो मनुष्य सभ्य, विवेकी
और उत्कृष्ट प्रजाति वाले होते हैं उनकी प्रत्येक व्यवहार में
विवेक की छाया होती है, और स्त्री-पुरुषों के पारस्परिक
अधिकारी से इसी प्रकार समाधान होता है। इस से यह
सिद्ध होता है कि जब दो मनुष्यों का जीवन एकत्र होता है,
तब वे समझ-बूझ कर अपने सब व्यवहारी में एक दूसरे को
सन्तुष्ट रखने की कोशिश में रहते है। उन में ऐसी प्रेरणा
कराने वाले कारण स्वाभाविक होते है। कावून ने जो सत्ता
एक दो हाथ में दे रक्खी है उसका उपयोग व्यवहार में नहीं
होता देखा जाता। फिर कायदे दो अनुसार गृहस्थी की
दीवार एक पक्ष को सम्पूर्ण अधिकार देकर और दूसरे पक्ष
को निर्बल बना शर खड़ी करने का मतलब समझ में नहीं
आता। ऐसी स्थिति में व्यावहारिक रीति से इस बात का
कोई खास नहीं दिखाई देता कि न्यायधीश जो-जो मन में
चाहे सो अधिकार देवे और जब मन में आवे तब छीन लेवे-
ऐसे कायदे का कुछ अर्थ ही नहीं है। इसके अलावा यह
भी मामूली पर गहरी बात है कि रिले अनिश्चित नियमों पर
दी हुई खाधीनता बहुमूल्य भी नहीं हो सकती। कायदा
तराज़ू के एक पलड़े लें ज़ियादा बोभा डालता है, इसलिए
ऐसे नियमों का यथान्याय होना कभी सम्भव नहीं। जिस
कानून के द्वारा दो मनुष्यों में से एक को सम्पूर्ण अधिकार
दे दिये जाते हों, और दूसरे को केवल अधिकारी की इच्छा
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