करने के योग्य समझता है। यदि मनुष्य-जाति की शारीरिक रचना का विचार करें तो यह उत्साह और यह उल्लास वृत्ति क्षणिक ही मालूम होगी, किन्तु ऐसे उत्साह के अवसरों पर उन में जिन उच्च विचारों का सञ्चार होता है, उनके अनुसार ही अपनी टेव बना कर सदा बरतने की इच्छा होती है।
ख़ास व्यक्तियों के तथा समग्र प्रजा के अनुभव को यदि ध्यान में रक्खेंगे तो इस अनुमान को पुष्टि मिलेगी कि, जो मनुष्य आवेश के वश में होजाने वाली प्रकृति के होते हैं वे विचार करने योग्य तथा व्यावहारिक कामों में मिन्न प्रकृति वाले मनुष्यों की अपेक्षा अयोग्य नहीं होते। फ्रेञ्च और इटालियन लोग स्वभाव से ही ट्यूटॉनिक प्रजा से विशेष चञ्चल और रजो- गुण-विशिष्ट प्रकति वाले होते है। और फिर अँगरेजों के साथ उनका मुकाबिला करते हुए तो उनके जीवन-क्रम पर मनो- विकारों का असर बहुत अधिक जान पड़ता है। पर इससे क्या वे शास्त्रीय खोज के काम में, न्याय और कानून के काम में, सार्वजनिक और युद्ध-सम्बन्धी कामकाज में, किसी प्रकार अँगरेजों से कम मालूम होते हैं ? इस ही प्रकार प्राचीन यूनानी भी अपने वंशजों ही के समान आवेश वाले थे -इसके बहुत से प्रमाण हैं। पर मनुष्य-जाति जिन-जिन बातों में आगे बढ़ी, उन सब में यूनानियों ने पहला स्थान लिया- इसके सिद्ध करने की आवश्यकता ही नहीं है। योरप के दक्षिण प्रान्त में रहने वाले यूनानी भी इस ही प्रकृति वाले