पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/२५९

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लड़कियों से तो अच्छे ही हैं, तथा उनकी उमर जैसे-जैसे बढ़ती जाती है यह ख़याल भी वैसे ही वैसे बढ़ता जाता है। पाठशालाओं में भी लड़के एक दूसरे के मन पर यही समझ ठूँसते हैं। हर एक लड़का बचपन से ही अपनी कौम को अपनी मां की क़ौम से अच्छा समझता है। और फिर वह जिस स्त्री को अपनी पत्नी बनाता है उससे अपनी बराबरी करते हुए तो अपने आप को श्रेष्ठ से भी श्रेष्ठ समझता है।

क्या लोग यह ख़याल करते होंगे कि ऐसी समझ से मनुष्य के बर्ताव पर शिथिलता का असर नहीं होता होगा? क्या इस कारण से मनुष्य का स्वभाव बदले बिना रह सकता होगा? राज-घराने में पैदा होने के कारण जैसे राजाओं को जन्म से ही अपनी श्रेष्ठता का ख़याल होता है, यह ख़याल भी मनुष्य में वैसा ही असर पैदा करता है। स्त्री और पुरुष का सम्बन्ध मालिक और नौकर या ग़ुलामों के सम्बन्ध से बहुत कुछ मिलता-जुलता है। अन्तर इतना ही है कि, स्त्रियों की ग़ुलामी और भी अधिक सख़्त है। दासत्व भोगने के कारण ग़ुलाम के व्यवहार पर जो भला या बुरा असर होता होगा उसे तो एक ओर रहने दीजिए, पर इसे कोई अस्वीकार नहीं कर सकता कि उसके मालिक पर तो शिथिलता का ही असर होता है। वह सुस्त ही बनता है। ऐसे अधिकार भोगने वाले मालिक यदि यह मानते हों कि दासवर्ग वाले सचमुच हम से योग्य हैं, और यदि योग्य नहीं तो बराबर के