पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/२६३

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प्राणी को एक मनुष्य-प्राणी का अधिकार दे दिया जाता हैतब उसका परिणाम यह होता है कि, समाज एक ओर तो एक मनुष्य की दुष्ट प्रवृत्तियों को बढ़ाता है और दूसरे व्यक्ति से उत्तम गुणों का लोप करना चाहता है। यदि ऐसी अन्याय से भरी और हानिकारक समाज की व्यवस्था एकदम बदल डाली जाय, तो समाज का जो परिश्रम व्यर्थ जाता है वह बच जाय। ऐसी व्यवस्था होने पर ही बचपन से बालक को वैसी यथार्थ शिक्षा मिलेगी जैसी आज ज़बानी बताई जाती है; जो बालक उस शिक्षा में बड़ा होगा उसके अनुचित मार्ग पर चलने की सम्भावना बहुत ही कम होगी। किन्तु जब तक निर्बलों पर बलवानों को अधिकार दिया जायगा, जब तक समाज के भीतर ऐसी व्यवस्था प्रचलित रहेगी, तब तक "बलवान और निर्बल के अधिकार समान हैं" इस न्याय के अनुसार व्यवहार होना असम्भव है—कमर में पत्थर बाँध कर तैरने के समान है। क्योंकि मनुष्य के भीतर वाले मनोधर्म न्याय के तत्त्व को सिर अवश्य झुकावेंगे, किन्तु उसके सर्वथा वशीभूत न होंगे और उसके ख़िलाफ़ ही बर्ताव बना रहेगा।

६-यदि स्त्रियों को उनकी शक्ति का यथेच्छ उपयोग करने और जो काम उन्हें पसन्द हो उसे करने की पूरी आज़ादी हो, तथा उनकी बुद्धि के विकाश के लिए पुरुषों के बराबर ही जगह दे दी जाय, साथ ही पुरुषों के बराबर ही उन्हें लाभ