पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/२९३

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भी शक नहीं। वर्तमान शिक्षा-पद्धति में जो लौट-फेर किया गया है—अर्थात् स्त्री-पुरुषों की शिक्षा-पद्धति भिन्न-भिन्न प्रकार की रक्खी गई है, यदि इसे बदल कर दोनों को एक ही तरह की शिक्षा दी जाय तो व्यक्ति की रुचि में जो स्वाभाविक भेद होंगे वे तो रहेहींगे—व्यक्ति में जो स्वाभाविक रुचि-वैचित्र्य होगा वह तो बना ही रहेगा—किन्तु सांसारिक मुख्य-मुख्य कर्त्तव्यों के विषय में स्त्री-पुरुष का एकमत होना अधिक सम्भव है—यह बात निर्विवाद है। सांसारिक बड़े-बड़े कर्त्तव्यों को पूरा करने में यदि दोनों एकमत हों, और उसके प्रयास में दोनों एक दूसरे की सहायता करते रहें, प्रोत्साहन देते रहें—तो छोटी-मोटी बातों में यदि उनकी रुचि भिन्न भी हो तो यह बात स्वयं उन्हें विशेष महत्त्व की न मालूम होगी। इस प्रकार का सम्बन्ध ही सच्चे और चिरकालीन प्रेम की दीवार है। इस प्रेम के प्रभाव से एक दूसरे से सुख प्राप्त करने की अपेक्षा एक दूसरे को सुख पहुँचाने का प्रयास करते हैं, यह बात कितने महत्त्व की है।

१७—अब तक हमने इस बात का विचार किया है कि पति-पत्नी के स्वभाव और रुचि न मिलने से सच्चे गृहस्थी के सुख में कितनी कमी रहती है। किन्तु पुरुष की अपेक्षा यदि स्त्री बुद्धि में कम होती है तो इसका परिणाम और भी ख़राब होता है। जिस दशा में दोनों की असमानता उत्तम गुणों की अधिकता से होती है अर्थात् दोनों में न्यारे-न्यारे प्रकार