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पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/२९५

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विशेष महत्त्व की नहीं मालूम होती, उसके विषय में पति भी उदासीनता दिखाने लगता है, अर्थात् जिस बात में स्त्री का उत्साह नहीं होता पति भी उससे विमुख होजाता है। विवाह करने से पहले जितने ऊँचे-ऊंँचे ख़याल उसके दिमाग में घूमा करते हैं वे सब बन्द हो जाते हैं। उन ख़यालों के योग्य जिन मित्रों से उसका सम्बन्ध होता है, वह भी घटने लगता है––और अन्त में उनका सहवास उसे बोझ मालूम होने लगता है। क्योंकि फिर उनके साथ बैठने से उसे अपनी अवनति का ख़याल होता है और शर्म आती है; तथा उसके मन और हृदय की उदार प्रवृत्तियाँ मन्द पड़ जाती हैं। उस में जो यह फेरफार होता है उसका कारण नवीन कौटुम्बिक सहवास से स्वार्थ-साधक वृत्तियों की ओर झुक जाना होता है––अर्थात् वह कौटुम्बिक वृत्तियों के अनुरूप बन जाता है और कुछ वर्षों में उस में और साधारण मनुष्यों में कुछ भी अन्तर नहीं रहता। साधारण बातों में उसका दिमाग़ ग़र्क हो जाता है और सुख भोगते हुए द्रव्योपार्ज्जन को वह अपनी प्रवृत्ति का मुख्य उद्देश बनाता है, इस के अलावा उसे और कोई ख़याल नहीं रहता––इसके सिवा फिर और कल्पना उसके दिमाग तक नहीं पहुँचती।

१८––जिनके मन उत्तम शिक्षा के द्वारा संस्कृत किये गये हों, जिन की शक्तियाँ पूर्ण रूप से विकसित हो गई हों, जिन के विचार और भाव एक ही प्रकार के हों, जिन में उत्कृष्ट