१०-अब कदाचित् कोई यह प्रश्न उठावेगा कि पुरुष स्त्रियों के जो अधिकार भोगता है, उस में अन्य प्रकार की सत्ताओं के अधिकारों से एक मुख्य भेद यह है कि इस सत्ता में ज़ोर-जुल्म का नाम भी नहीं है। स्त्रियाँ पुरुषों के अधिकारों को प्रसन्नता से मञ्जूर करती हैं; स्त्रियाँ पुरुषों के अधिकारों को एक दिन भी दोष नहीं देतीं, बल्कि इस अधिकार को पुरुष स्त्रियों की इच्छा और सम्मति से ही भोगते हैं। सब से प्रथम तो अधिकांश स्त्रियाँ इसे स्वीकार ही न करेंगी। जब से ऐसी स्त्रियों की सँख्या बढ़ने लगी है जो लेखों के द्वारा अपने मानसिक भावों को प्रकट कर सकती हैं तब ही से अपनी सामाजिक दशा पर असन्तोष प्रकट करनेवाली स्त्रियों की तादाद भी बढ़ी है, और इस समय तो बुद्धिमान और विचारज्ञ स्त्रियों को अपना नेता बना कर हज़ारों स्त्रियाँ पार्लिमेण्ट में प्रविष्ट होने और वहाँ अपनी सम्मति देने का अधिकार प्राप्त करने की कोशिश में हैं। साथ ही यह विवाद भी एक अर्से से चल रहा है कि पुरुषों को जितने विषयों की शिक्षा दी जाती है स्त्रियों को भी उन सब विषयों की शिक्षा दी जानी चाहिए, और इस विषय में उन्हें बहुत कुछ सफलता मिल भी चुकी है। और जिन उद्योग-धन्धों में नियमानुसार उन्हें प्रविष्ट होने की आज्ञा नहीं है, उन में प्रविष्ट होनेका प्रयत्न वे लगातार दृढ़ता के साथ कर रही हैं। यूनाइटेड
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