पृष्ठ:स्वाधीनता.djvu/१०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

अभिनव वक्तव्य।

नागपुर की हिन्दी-ग्रन्थ-प्रकाशक मण्डलीने इस पुस्तक का पहला संस्करण १९०७ ईसवी में निकाला। वह संस्था इसका दूसरा संस्करण भी शीघ्र ही निकालने जाती थी कि दैवयोग से वह असमय में ही अस्तङ्गत हो गई। इससे, तथा और भी कुछ कारणोंसे, इसकी दूसरी आवृत्ति निकालने का काम कुछ समय तक स्थगित रहा। बम्बई के हिन्दी-ग्रन्थ-रत्नाकर कार्य्यालय को जब हमने इसके प्रकाशन की अनुमति दी, तब इसका अगला संस्करण कहीं १९१२ ईसवी में जाकर प्रकाशित हुआ। उसकी समस्त प्रतियाँ समाप्त हुए बहुत समय हो गया। इससे सूचित है कि इस पुस्तककी कदर लोगों ने की है; उन्हें इसका विषय, और इसके विचार उपयोगी ज्ञात हुए हैं। समय ने भी पलटा खाया है। देश में सर्वत्र जागृतिने अपने पैर जमाये है। दूसरों को हानि पहुँचाए बिना अपने मनमाने काम करने और जी की बात खोलकर कह देने का महत्त्व अब प्रायः सभी शिक्षित जनों की समझ में आगया है। राजनीति की जिन जटिल समस्याओं की समालोचना इस पुस्तक में प्रसङ्गवश आ गई है उनकी भी चर्चा इस समय इस देश में खूब हो रही है। अतएव ऐसे समय में इस पुस्तक का यह तीसरा संस्करण अच्छे अवसर पर निकाला जा रहा है। आशा है, हिन्दी पुस्तकों के प्रेमी पाठक इसका भी पूर्ववत् आदर करने की कृपा करेंगे।

हिन्दी के सौभाग्य से मिलसाहबकी अन्य भी दो महत्त्वपूर्ण पुस्तकों का अनुवाद हिन्दी में प्रकाशित हो गया है। उन के नाम हैं—(१) स्त्रियों की पराधीनता (subjection of Women) और (२) प्रतिनिधिसत्ताक शासनप्रणाली (Representative Government)

दौलतपुर, रायबरेली। महावीरप्रसाद द्विवेदी।
१० जनवरी १९२१.