पृष्ठ:स्वाधीनता.djvu/११९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
९२
स्वाधीनता।


एक पक्ष अपने विपक्षी के दोषों को दिखाकर समाज को लाभ पहुंचा सकता है । विपक्षी की प्रतिकूलता ही हर पक्ष को औचित्य की सीमा के बाहर नहीं जाने देती-उसे अतुचित बातें करने से रोकती है । सर्वसाधारणजनसत्ता और प्रधानजनसत्ताके, सम्पदा और समता के, सहयोगिता और प्रतिस्पर्धाके, सामाजिकता और व्यक्तिता के, स्वाधीनता और शासन के या व्यवहार से सम्बन्ध रखनेवाली और भी ऐसी ही परस्पर विरुद्ध बातों के अनुकूल या प्रतिकूल मत प्रकट करने के लिए सत्र लोगों को पूरी पूरी स्वाधीनता देना चाहिए सब को बिना किसी रोक टोक के आजादी मिलना चाहिए-और खूब उत्साह से समभाव रखकर इन विरोधी जोड़ों की विवेचना होनी चाहिए । उपयोगिता और अनुपयोगिता पर खूब विचार होना चाहिए। जब तक ऐसा न होगा तब तक दोनों पक्षोंके गुणदोष समझ में न आवेंगे और एक पक्ष का पल्ला ऊंचा और दूसरेका जरूर नीचा बना रहेगा । व्यवहारसम्बन्धी जितने बड़े बड़े काम हैं उनमें से सत्य को खोज निकालना विरोध बातों का मेल मिलाने-उनकी एकवाक्यता करने पर ही अधिक अवलम्बित रहता है । पर विरोधी बातों की, यथासंभव, ठीक ठीक एकवाक्यता करने के लिए बहुत कम आदमियों का मन यथेच्छ न्यायी,उदार और प्रशस्त होता है। अतएव बेजोड़ बातों का जोड़ मिलाने, अर्थात् बेमेल विषयों की एकवाक्यता करने के लिए दो विरोधी झण्डे खड़े करके खूब लड़ना झगड़ना पड़ता है-खूब वादविवाद करना पड़ता है । जिन विरोधी मतों का उल्लेख ऊपर हुआ है उनमें से यदि किसी को मदद या उत्साह देना चाहिए तो जिस मत के अनुयायियों का दल, उस समय निर्बल हो उसे ही देना चाहिए । क्योंकि, उस समय, आदमियों के फायदे की जिन बातों की लोग कम परवा करते हैं उन्हीं के लिए वह दल कोशिश करता है । अतएव यदि वह पक्ष इस तरह की कोशिश न करे तो उन बातों पर यथोचित विचार न होने का डर रहता है । मैं जानता हूं कि इस देशमें, इस समय, पूर्वोक्त बहुतसी बातों के विपय में अपने मत से भिन्न मत रखनेवालों की बातों और दलीलों को लोग सुनते हैं । उनके प्रकाशन में वे किसी तरह के अटकाव नहीं पैदा करते। खिन्न मतों की असहिष्णुता उनमें नहीं है । अनेक सर्वमान्य दृष्टान्तों और उदाहरणों के द्वारा इस व्यापक सिद्धान्त की मजबूती की जा सकती है कि, आदमियों की