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पांचवां अध्याय।

अधिकार है; पर औरों को हानि न पहुँचाकर खुद सुख से रहने का उन्हें जरा भी अधिकार नहीं।

गवर्नमेण्ट की दस्तंदाजी की हद क्या होनी चाहिए? कहां तक दस्तंबाजी करने का हक गवर्नमेण्ट को है? इस विषय में बहुत सी बातें पूछी जा सकती हैं। इस प्रश्न-समूह को मैंने पीछे के लिए रख छोड़ा है; क्योंकि इन प्रश्नों का यद्यपि इस लेख से बहुत घना सम्बन्ध है, तथापि ये इस निबन्ध के अंशभूत नहीं माने जा सकते। ये ऐसी बातें हैं कि इनके सम्बन्ध में गवर्नमेण्ट की दस्तंदाजी स्वतंत्रता के सिद्धान्तों के अनुसार अनुचित नहीं ठहराई जा सकती, क्योंकि इन बातों में गवर्नमेण्ट जो दस्तंदाजी करती है वह लोगों काम-काज का प्रतिबन्ध करने के इरादे से नहीं करती, किन्तु सब आदमियों को मदद देने के इरादे से करती है। अब इस बात का विचार करना है कि लोगों के फायदे के लिए यदि गवर्नमेंट कोई काम करना या कराना चाहे उसे वैसा करने देना अच्छा है; अथवा सब आदमियों को अलग अलग, या कुछ आदमियों को मिलकर, करने देना अच्छा है?

यदि गवर्नमेंट लोगों के फायदे के लिए कोई काम करना चाहे, और समाज की स्वाधीनता में बाधा डालने का उसका इरादा हो, तो गवर्नमेंट की दस्तंदाजी के विरुद्ध तीन तरह के आक्षेप हो सकते है।

पहला आक्षेप यह है कि जिस काम को गवर्नमेंट करना चाहती है वह काम, सम्भव है, गवर्नमेंट की अपेक्षा हर व्यक्ति—हर आदमी—अधिक अच्छी तरह कर सके। साधारण नियम तो यह है कि जिस काम से जिनके हिताहित का सम्बन्ध होता है उस काम के विषय में वही इस बात को अच्छी तरह जान सकते हैं कि कब, कैसे और कौन उसे अच्छी तरह कर सकेगा। इस विषय में वे जितने योग्य होते हैं उतना और कोई नहीं होता। पहले इस तरह के कानून बहुधा बनाये जाते थे कि व्यापारियों को किस तरह व्यापार करना चाहिए और व्यापार की चीजों के बनानेवालों को इन्हें किस तरह बनाना या बेचना चाहिए। पर पूर्वोक्त सिद्धान्त से साबित है कि लोगों की स्वाधीनता में इस तरह की दन्तंदाजी करना सर्वथा अन्याय है। व्यवहारशास्त्र के विद्वानों ने इस विषय का पहले ही से बहुत अधिक विनेचन कर डाला है। और इस लेख के तत्वों से इसका विशेष सम्बन्ध