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दृश्य २
[चार बज चुके हैं। झुट पटासे का समय है। एक खुले हुए कीचड़ से भरे मैदान में मज़दूर जमा हैं। आगे काँटेदार तारों का बाड़ा है जिस के उस पार एक नहर की ऊँची पटरी है। नहर में एक नौका बँधी हुई है। दूरी पर दलदल है और बर्फ से ढकी हुई पहाड़ियाँ हैं। कारखाने की ऊँची दीवार नहर से इस मैदान में होती हुई जाती है। दीवार के कोने में पीपों और तख्तों का एक भद्दा सा मंच है। उस पर हारनेस खड़ा है। इस भीड़ से कुछ दूर हटकर रॉबर्ट दीवार का तकिया लगाए खड़ा है। ऊँची पटरी पर दो मल्लाह निश्चिन्त लेटे हुए सिगरेट पी रहे हैं।]
हारनेस
[हाथ फैलाकर]
बस, मैंने तुम लोगों से साफ़ साफ़ कह दिया। मैं अगर कल तक बोलता रहूँ तब भी इस से ज्यादा और कुछ नहीं कह सकता।
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