हम यह चाहते हैं कि हमारे नाटक लिखने वाले इन ड्रामों की तरफ़ ध्यान दें और हमारे देश के रहने वाले इनमें दिलचस्पी लें। यह तो सब मानेंगे कि आदमी योरुप के हों या एशिया के—आदमी हैं। रीति रिवाज के झीने परदे इनमें कितना ही अंतर क्यों न बना दें लेकिन वे ही भाव, वे ही विचार, सब कहीं मौजूद हैं। यदि योरुप के ड्रामे हिन्दुस्तानी भाषा में उपस्थित किये जायं तो क्या यह सम्भव नहीं कि इनको देख कर हमारे देस में बरनार्ड शॉ, गाल्सवर्दी, मेज़फील्ड सरीखे नाटक लिखने वाले पैदा हों।
हम यह नहीं कहते कि यह अनुवाद मुहाविरे और भाषा की दृष्टि से निर्दोष हैं। इनमें ग़लतियें हो सकती हैं। बात यह है कि अभी हमारी ड्रामे नाटक की भाषा से अनजान से हैं और इनमें सुधार की बड़ी ज़रूरत है। हम आशा करते हैं कि यह अनुवाद इस कमी के पूरा करने के उपयोगी काम में सहायक होंगे।
ताराचंद
मंत्री,
हिन्दुस्तानी एकेडेमी, संयुक्त प्रांत।