पृष्ठ:हमारी पुत्रियाँ कैसी हों.djvu/१३६

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१२५ ढंकना बन्द कर दो। अब उसमें यथा रुचि चीनी या शकर मिला कर काम में लो। चाय ठए डी या बासी नहीं पीनी चाहिए । काफी भी इसी भाँति बनती है। यह चाय से गर्म है और रगों में तेजी दिखलाती है । इसके बीज होते हैं । उन्हें कूट कर चूर्ण कर लो और घी में भून कर उपयोग में लाओ । काफी का चूर्ण बाजार में मिलता है। इसे दूध में डाल काढ़े की भाँति उबालना चाहिये । फिर शकर मिला कर पीना चाहिए । रोगी का पथ्य माँड, यवागू और लपसी- घर में कभी-कभी रोगी के लिए पथ्य-पानी बनाने की भी जरूरत श्रा पड़ती है इसलिए हम यहाँ उसका विधान भी संक्षेप में लिखते हैं। चावल या जौ ले कर जरा कूट डालो । जौ को भिगो कर उसका छिलका छुड़ा लो । इसमें १६ गुना पानी डाल कर खूब पक जाने पर मांड बनता है । ग्यारह गुने पानी में पकाने से यवागू या पेय बनता है। और नो गुने पानी में पकाने से लपसी बनती है। पेय या लपसी छानी नहीं जाती। खील का माँड- ताज़ा खील थोड़े गर्म पानी में कुछ देर भिगो दो फिर कपड़े में छान कर जो माँड जैसा पदार्थ निकले वह खील का माँड होगा। बाली, अरारोट-- बाली और अरारोट को प्रथम गर्म पानी में अच्छी तरह घोल ले, फिर दूध और मिश्री मिला कर प्रौटावे । साबूदाना- साबूदाना बनाने की भी यही रीति है पर उसे कुछ - र ठण्डे पानी