पृष्ठ:हमारी पुत्रियाँ कैसी हों.djvu/१८

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से पालन करना चाहिये। यदि भोजन ठीक समय पर किया जायगा तो दस्त जाना और सोना भी ठीक समय पर होगा। भोजन के साथ और भोजन के बाद भी जल बहुत कम पीने देना चाहिये । बचपन ही से लड़कियों को कम पानी पीने की आदत डालनी चाहिए । ज्यादा पानी से आगे चल कर वे मोटी हो जावेगी, उनका ऋतु-धर्म दोप-पूर्ण होगा और उनका रंग फीका हो जाएगा एवं उनका पेट बढ़ जायगा । जल सदा बहुत उत्तम, बहुत साफ पीना चाहिए । जल के सम्बन्ध में लोग बहुत लापर्वाह होते हैं । पर जो लोग स्वच्छ जल नहीं पीते-वे देर तक सुन्दर नहीं रह सकते । रक्त को शुद्ध और लाल बनाए रखने में साफ जल बहुत अच्छा और सहायक है। नलों का पानी यथा सम्भव न पीया जाय । कुत्रों का जल छान कर या पका कर पीना अच्छा है । शरद और बसन्त-ऋतु में कुएं का जल भी पीना अच्छा है । सोड़ा, लेमनेड, बर्फ बहुत कम-सन्ध्याकाल में कभी-कभी पिये जायं। अधिक पीने से दांतों में रोग होने का भय है। पांच वर्ष की आयु के बाद कन्या को सुबह दूध, मक्खन या दही, दोपहर को दाल, भात, रोटी, दलिया, घी, तरकारी; तीसरे पहर को कुछ फल; शाम को रोटी, पूरी, तरकारी और रात को थोड़ा दृध । यह सब सामान अल्प हो । खूब ठूस कर न खाया जाय, खाते समय खराक टीक-ठीक चवा ली जाय और स्वस्थ्य होकर प्रसन्नता पूर्वक भोजन किया जाय। मिठाइयां बहुत कम दी जायं । दही-दृध, और छाछ यथेष्ट दी जाय । चाट, पकौड़ी, अचार, पान, मुरब्बे, कतई न दिये जाएं । मिर्च-मसाले बहुत कम दिए जाएं। खुराक का अनुमान करते समय कन्या की आयु, शरीर-सम्पत्ति और परिस्थिति देख कर हरएक वस्तु का अनुमान करना चाहिये । परन्तु हर हालत में खुराक ऐसी होनी चाहिये जिस में तीन गुण हों । १-