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यह पुराना घृत-मृगी और पागलपन में जादू की तरह गुणकारी है, सन्निपात में, वाय भडकने पर भी इसका चमत्कार देखने को मिलता है। बहुत ही मूल्यवान और दुर्लभ वस्तु है। यहं खाया नहीं जाता; पिचकारी देने सूंघने या मालिश के काम पाता है। शतधौत घृत- सौ बार धोया घृत खाने में विष है, पर लगाने में अमृत है। दाद, फोड़ा-फुन्सी में लगाया जाता है। रोगों पर १-आधा शीशी पर- ताजा घृत प्रातः सायं दोनों समय नाक से हुलास की तरह सूघो। सात दिन में -आराम होगा। २-नकसीरमें- उपरोक्त नस्य लाभ करेगा। ३-सिर दर्द- यदि गर्मी का हो तो ठण्डा, वादी का हो तो गर्म घृत मालिश करो। ४-हाथ-पैर की भड़कन पर सौ चार धोया घृत मलो। ५-धतूरा या रस कपूर- के विप चढ़ने पर बहुत सा घृत पिलायो। ६-- शराब का नशा चढ़ गया हो तो, २ तोले घृत.२-तोले चीनी मिला कर देना चाहिये।