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पृष्ठ:हमारी पुत्रियां कैसी हों.djvu/१३७

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> चाशनी- बनने की पहिचान यह है कि इसमें जब चार-पाँच तार देख पड़ें तब उतार कर रख लो, और जब वनाने बैठो तव खमीर को खूब फेंट लो और एक छोटी सी मलिया के पैदे में कलम के बराबर मोटा छेद कर लो घी को कढ़ाई में डाल भट्टी पर चढ़ा दो, जब घी गर्म हो जावे तब उस मलिया में खमीर को भरो और छेद एक अंगुली से दाब लो फिर सीधे हाथ में उसको ले उँगली को हटा प्रत्येक जलेवी के लिए चार चक्कर दे कर कढ़ाई वा तई में जितना हो सके फेरो; फिर उस छेद को उसी उंगली से बन्द कर दो, जब वह सिक कर आ जावे तब बांस की आधी उँगली बराबर मोटी और हाथ भर लम्बी और सीधी लकड़ी से निकाल-निकाल कर चाशनी में डाल पौना या कलछी से वोड़-बोड़ कर अलग किसी थाल में रखती जाओ। चाशनी भैदा से दुगनी वा ढाई गुनी होनी चाहिए। अमरती- उरद की दाल को तीन पहर अच्छे प्रकार भिगो कर खूब धोओ, जिसमें छिलका न रहे, फिर उसको बीन कर वहुत महीन पीसो और एक कपड़ा वालिश्त भर लम्बा-चौड़ा ले कर उसके वीच में छेद कर उसको चारों तरफ से सींदो, फिर जितनी करनी हो उससे तिगुनी उपरोक्त प्रकार की चाशनी बना कर रख लो। इसके पीछे भट्टी पर घी को नई पर चढ़ायो। और पिछी को अच्छे प्रकार मथ-मथ कर या प्रथम ही से मथती हो, अथवा अन्य कोई पुरुष मथ-मथ कर देता जाय, धी खरा होने पर उस को उस छेद वाले कपड़े में रख कर सीधे हाथ में कपड़े को हाथ से दवा और फिरा कर एक छोटा-सा गोलाकार बनायो । फिर गोले से दाहिनी तरफ से छोटे-छोटे से गोल खाने एक तरफ