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पृष्ठ:हमारी पुत्रियां कैसी हों.djvu/१९

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१२ बजे तक भोजन आदि से निपटकर कन्या खेल, विनोद, गुड़िया, ड्राइंग या गपशप आदि ऐसे काम करे कि शरीर और दिमाग दोनों को पूर्ण विश्राम मिल सके । गर्मी की ऋतु हो तो कुछ काल सो भी ले । २ बजे उसे सीना, कसीदा काढ़ना, कतर ब्योंत करना और वस्त्र सम्बन्धी कर्मों को करना चाहिए, और ५ बजे थोड़ा जल पान कर, भ्रमण या गायन अथवा और कोई विनोद मनोरंजन का कार्य करे । ७ से ८ तक भोजन और ६ बजे शयन करे।

साधारणतया यह दिनचर्या थोड़े परिवर्तन के साथ १६, १७ वर्ष की आयु तक की कन्या की चल सकती है।

कन्याओं के लिये सोने के लिए भी कुछ खास वातों की आवश्यकता है। पहली बात तो यह है कि वे ५ वर्ष की आयु के बाद कैसी ही अवस्था में हों, नंगी, न सोवें, हलका कुर्ता धोती आदि अवश्य पहने रहे। कोई कपड़ा कसा हुआ न हो खासकर सीने पर । धोती ढीली बांधी जाय । और वह नाभि के पास हो-बहुत नीचे नहीं। विछौने में बहुत गुदगुदे गद्दे न हों वल्कि शतरंजी और साफ़ चादर काफ़ी है । यथा सम्भव तकिया न दिया जाय । सिर का जूड़ा खोल दिया जाय । जिस से उसका सिर सम धरातल पर होने से रक्त का ठीक प्रवाह मस्तिष्क की । ओर बना रहे । यदि तख्त पर उसे सुलाया जाय तो अच्छा है। चादर सफेद और साफ़ होनी चाहिए और वह अधिक से अधिक - सप्ताह में एक बार ज़रूर बदल दी जाय । हमेशा कन्या को इस भांति सुलाओ कि उसका वामभाग उत्तर दिशा में रहे। अर्थात् पूर्व दिशा में उसके पैर रहें । सोने की जगह खुलासा हो। वरंडा या कोई बड़ा हवादार कमरा इस काम के लिये ठीक होगा। उन्हें सदैव बचपन से अकेला' सोने की आदत डालनी चाहिए। कन्या