पर पकती है कोई तेज आँच पर। किसी में प्रथम कड़ी आँच की जरूरत पड़ती है पीछे धीरे धीरे कम करके अंगारों पर पात्र रख दिया जाता है। कई पदार्थों को दम देकर पकाया जाता है। आँच लगाने में चतुराई यह है कि पदार्थ न कच्चा रहे न जले, किन्तु ठीक पक जाय । ६-पकाने के लिए पात्र भी भिन्न भिन्न प्रकार के होने चाहिए। खट्टी चीजें मिट्टी के पात्रमें या कलई किये हुए ताम्बे पीतल के पात्रों में पकाई जानी चाहिये । विना कलई किए धातु के पात्रों में भोजन विषाक्त होने का भय रहता है। मिट्टी के पात्र को एक बार से अधिक काम में लाना न चाहिए । सिर्फ दूध की हाँड़ी बहुत दिन चल सकती है। अन्य पात्रों को भली भाँति धो मांज कर खूब स्वच्छ कर रखना चाहिए। यदि मिट्टी के बर्तन को बारम्वार काम में लाना ही पड़े तो पाक हो चुकने पर उसे एक कपड़े से खूब रगड़कर भीतर से धो डालो, पीछे मिट्टी पोत कर आग पर सुखा दो और खूटी पर टाग दो। ऐसा यदि न किया जाय तो उसमें जीवाणु उत्पन्न होने का भय रहेगा और उसमें दुर्गन्ध आने लगेगी। एल्यूमिनियम का रिवाज़ गरीबों में बहुत चल गया है। जाहिरा तौर पर उसमें खट्टी चीजे बिगड़ती नहीं, पर वास्तव में खटाई से वह घुलने लगता है और उसका विप खाद्य पदार्थ में मिल जाता है। १०-जल भी भोजन का मुख्य अंग है। स्वास्थ्य और जीवन का अाधार बहुत अंश तक जल पर भी निर्भर है। स्वच्छ शीतल जल रक्त को शुद्ध करनेवाला, पाहार को पचाने में सहायक, उत्तम पसीना और मूत्र लानेवाला है। सदैव उत्तम , ४६
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