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हम कैसी दुनिया चाहते हैं ?


● दिनेश कर्नाटक


अभी हम दिल्ली में दिसम्बर 12 में घटित हुए दामिनी दुष्कर्म को भूला भी नहीं पाये थे कि पांच वर्ष की गुड़िया के साथ हुए बर्बर अनाचार ने सब को एक बार पुनः दहला कर रख दिया। इसके साथ ही एक बार फिर से घर-परिवार, समाज-संस्कृति, परंपरा-आधुनिकता तथा राज-व्यवस्था को लेकर लोगों के बीच में बहस होने लगी है। कोई इस घटनाक्रम के लिए मां-बाप के ढीलेपन को जिम्मेदार ठहरा रहा है, कोई बढ़ती हुई अपसंस्कृति तथा परंपरा से दूर होने को इसका कारण मान रहा है तो कोई इसके पीछे व्यवस्था की नाकामी को देख रहा है। गुस्से और जल्दबाजी में लोग न जाने कैसे-कैसे निष्कर्ष निकाल रहे हैं। हद तो तब हो जा रही है, जब कई लोग इसके लिए स्त्री को ही दोषी ठहरा दे रहे हैं।

क्या बच्चों को संवेदनशील तथा सुसंस्कृत बनाने की जिम्मेदारी सिर्फ मां-बाप, परिवार तथा समाज की है या इसमें राज्य की भी कोई भूमिका बनती है ? बेशक मां-बाप, परिवार तथा समाज की भूमिका तो है ही, लेकिन सबसे बड़ी भूमिका राज्य की है। राज्य की नीतियों से तय होता है कि वह बच्चों को कैसा नागरिक बनाना चाहता है? उन्हें किस दिशा की ओर ले जाना चाहता है? क्या हमारी राज व्यवस्था बच्चों की चिन्ता कर रही है? क्या उन्हें सुसंस्कृत तथा जिम्मेदार नागरिक बनाने की दिशा में वह कोई गंभीर पहल कर रही है ? शायद नहीं, क्योंकि जिस देश में मुट्ठी भर लोगों ने तमाम संसाधनों पर कब्जा जमाकर, तीन चौथाई लोगों को घुट-घुटकर जीने या दो जून की रोटी के लिए लुटेरा बनने को मजबूर कर दिया हो। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर बेरोकटोक सैक्स परोसा जा रहा हो। उस देश के कुंठित किशोर और युवा अगर बलात्कारी होते जाएं तो इस पर आश्चर्य नहीं होता।

हमारा संविधान एक धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक, समाजवादी गणराज्य की परिकल्पना करता है। क्या व्यवहार में भी ऐसा हो रहा है? सच तो यह है कि हमारे हुक्मरानों ने इस देश में ईमानदारी से लोकतांत्रिक समाजवाद को लाने की कभी कोशिश ही नहीं की। यह काम शिक्षा से शुरू होना था। सभी वर्गों के बच्चों के लिए समान शिक्षा को लागू करके हम यह कार्य कर सकते थे। ऐसा क्यों हुआ कि आजादी से पहले जिस माल रोड और कांन्वेंट स्कूल में कुत्ते तथा भारतीयों के प्रवेश की अनुमति नहीं थी। आजादी के बाद वह माल रोड तो सभी के लिए खुल गयी, मगर वे स्कूल पूर्ववत देश पर कब्जा जमाए हुए भारतीय अंग्रेजों के बच्चों के लिए हो गये। उनका गेट उसी दिन से समान रूप से सभी वर्गों के बच्चों के लिए क्यों नहीं खोला गया ?

इस सूत्र के सहारे हमारे शासकों

जून/2013
शैक्षिक दखल// 47