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हग वामन्ती सतत सनातन हम है स्नेहागार, इसमे क्या वमत की महिमा म्मर सार, आज, मसि, नवल वसन्त बहार कर रही मदिर-भाव-मचार । मेरे जीवन के तरुवर को ओ फलिके सुकुमार, यौवन डाली पर हंत झूलो करो जरा ऋतु रार, सग्वि, नवल बसन्त वहार कर रही मदिर - भाव सचार 1 आज, अविचार? गल वहिया-मी ऐल विहमती बन जाओ गल हार अब कैसी वह सिशक सालौने ? यह कैसा आज, सखि, नवल वसन्त बहार कर रही मदिर - भाव सचार । श्री गणेश कुटीर वानपुर ९ फरवरी १९१५ ३१४ दम शिपाया वनम