पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/३८७

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फिर से फिर से क्या आफत आयी। दिल कहा गया वह अपना ? है अजब हाल इस मन का देखे हैं दिन में सपना । मासे झपना, कंपना हिय ने सीखा था सीखी थी पर रसना ने सीखा है- अब किसी नाम का जपना । अलमस्त रादा के ठहरे अल्हड नवीन ये झेले, फिर आज वह चले इनके- हिय के सुकुमार फफोले। थे गये सहज हो कासी गल-फांसी आये ये, फासी- करवत के बदले हिम - गाँसी ले आये थे। विभ्रम मम्ध्रम की अपनी- मूली- मी अकथ बहानी,- इनने भूपता फरसे फिर से रहने की ठानी। इम मिलावी नमक