पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/६६७

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चेतन जय सदेह बनता है तब जीवन कहलाता, वरना इस शरीर-बन्धन से उसका कसा नाता? दैहिक पिंजर तोड दारोरी हसा जब उड़ जाये, तव पयो गिलसे अश्रु लालिता ममता शोणित लाता ? गागर में सागर का सर जल भर पायेगा वैसे? चेतन सागर, देह गागरी मे, आयेगा कैसे? पदि हठकर कुछ विदु देह के बन्धन में बंध जायें,- तन भी मुक्त सलिल को, बन्धन-सुख भायेगा कैसे? देह चली मरघट नो चढवार चार जनो के कन्धे,- अलग चेतना चली तोडकर सब माया के फन्दे, हास-विलासमयी सब ममता विरार गयी धर-भर में, छूट गये जीवन की गति के सारे गोरख-धन्धे । सरिता ने प्रकटित की कल कल, भावो पल की आशा, औ' सियार बोले गत कल ही हुआ हुआ की भापा, भावी और भूत के बन्धन जब जीवन ने जाने, वालातीत तभी होने को जगी हृदय-अभिलापा। रुद्र धूजटी के पागण मे भस्म उही गव-लय की, किंवा हुई तत्व मोमासा जीवन के समय को, मृत्यु बन गयी चेतनता के उत्क्रमणो ची सीढी,- हर हर बार श्मशान पीपल ने चेतन की जय जय को । हम विषपाया सनम ६२८