पृष्ठ:हिंदी कोविद रत्नमाला भाग 1.djvu/११४

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में नियत हुए परंतु शीघ्रही आपकी बदली अकाल के मुहकमे में (२१) डाक्टर जी. ए. ग्रियसन, सी. आई. ई.। कर प्रियसन सो० प्रा० ० पायरलैंड के बलिन । डा गने में गयफन हम हाउस नामक घराने के ना PRECRधीयुत जा अग्रहम प्रियसन के पुत्र हैं। प्रारया ता० ७ जनयरी सन् १८५७ १० में हुमा था । पहिले तो मुयान्या विधान् शिक्षकों यारा इनकी घर पर ही उचित शिक्षा दी गई। जय १७ वर्ष की प्रयस्मा हो गई तब उच्च शिक्षा प्रात करने लिये आप डयलिन नगर के ट्रिनिटी कालेज में बैठाए गए । यहाँ इन्होंने वी०१० पास किया, फिर रावट पटकिंसन से संस्क सोखी और मोर प्रौलादअली के पास हिंदुस्तानी भाषा पढ़ने लगे संस्कृत और हिंदुस्तानी भाषा में इन्होंने अच्छी योग्यता प्राप्त और उसके लिये युनिवर्सिटी से पुरस्कार पाया। सन् १८७१ में आपने हिंदुस्तान की सिविल सर्विस परीह पास की और दो वर्ष वाद हिंदुस्तान में आकर बंगाल के जैसोर स्थान हो गई और आप विहार प्रांत की दुर्भिक्ष-पीड़ित प्रजा की प्रार रक्षा के लिये भेजे गए। यहां माकर जब आपने देखा कि तिरहुत . प्रांत के लोग तिरहुती भाषा के सिवाय दूसरी वोली जानते हो नहीं तब इनका ध्यान इस ओर आकर्षित हुमा कि विलायत से जो केवल हिंदी और बंगला में परीक्षा पास करके इस सुविस्तृत देश का शासन करने आते हैं वे प्रजा का दुःख सुख कदापि नहीं समझ सकते, इसलिये इस भाषा का व्याकरण और कोष तयार होना अत्यंत आवश्यक है।