(२६) पंडित दुर्गाप्रसाद मिश्र । का दमीर को राजधानी जंवू से बीस कोस पर जामवंत को बेटी जाम्यवती में गर्भ से उत्पन्न श्रीकृष्ण जी के पुत्र शांब का बसाया हुआ साँवां नगर है। यही साँवाँ नगर पंडित दुर्गाप्रसाद जी की जन्मभूमि है। आप र्यवंश के आदिपुरोहित वशिष्ठ ऋषि-कुलोत्पन्न सारस्वत ब्राह्मण हैं। नको वंश-परम्परा-उपाधि "राजोपाध्याय" है परंतु पंजाब में ब्राह्मया पत्र को "मिश्र" कहते हैं इसीसे इनके नाम के आगे यह उपाधि गी हुई है । इनके पिता का नाम पंडित घसीटे राम मिश्र था। पंडित दुर्गाप्रसाद मिश्र का जन्म आश्विन संवत् १९१६ की शार- दीय नव दुर्गाओं में नयमी बुधवार को हुआ था। इसीसे आपका नाम दुर्गाप्रसाद रखा गया। पितामह आपके संस्कृत के अच्छे विद्वान् और कर्मकांड में परम प्रवीण पंडित थे । वे सपरिवार जग- दोश के दर्शन करने गए। वहां से लौट कर पाते समय कलकचा- निवासी पंजाबी खत्रियों ने इनसे कलकत्ते में ही प्रवास करने का अनुरोध किया इसलिये ये भी वहीं रहने लगे। इनके तीन पुत्र थे और वे तीनों सौदागरों की बड़ी बड़ी कोठियों में दलाली का काम करने लगे। पंडित दुर्गाप्रसाद मिश्र ने बाल्यावस्था में डोगरी हिंदी प्रारबँगला. भाषाओं का घर पर ही अभ्यास किया और फिर काशी में पाकर संस्कृत पढ़ी। इसके बाद फिर कलकत्ते चले गए और नार्मल स्कूल में अंगरेज़ो का अभ्यास करने लगे । अँगरेजी में कुछ पढ़ने लिखने का धान प्राप्त करके इन्होंने स्कूल छोड़ दिया और अपने बड़े की
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