पृष्ठ:हिंदी कोविद रत्नमाला भाग 1.djvu/१८१

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(३३) पंडित गौरीशंकर हीराचंद ओझा । दो के इतिहास-मर्मस विद्वानों में पंडित गौरीशंकर होराचंद मोझा का आसन ऊंचा है। इन्होंने हिंदी FOR की सेवा के उद्देश्य से जो जो ऐतिहासिक पुस्तके लिखी हैं उन सब की बड़े बड़े विद्वानों ने मुक्त कंठ प्रशंसा की है। इनके पूर्वज मेवाड़ के रहने याले थे। कोई २२५ वर्ष हुए होंगे के वे लोग सिरोही राज्यांतर्गत रोहिड़ा प्राम में जा बसे । यही ५ सितंबर सन् १८६३ में ओझा जी का जन्म हुआ। इनके पिता नाम होराचंद. और दादा का पीतांबर था। ये जाति के सहन नौदीच्य ब्राह्मण हैं। सात वर्ष की अवस्था में इन्होंने एक पाठशाला |हिंदी पढ़ना आरंभ किया। दो वर्ष हिंदी अध्ययन करते रहे। अनं- र साठ वर्ष की अवस्था में यज्ञोपवीत संस्कार होने पर वेदाध्ययन प्रारंभ किया । चार वर्ष में संपूर्ण शुक्ल यजुर्वेदीय संहिता कंठान रिके गणित पढ़ना प्रारंभ किया। पर किसीउपयुक्त गुरु के न मिलने से ओझा जी १४ वर्षको अवस्था में बंबई चले गए और यहाँ पहिले ६ महीने तक गुजराती भाषा सोखते रहे। अनंतर एल्फिंस्टन हाई स्कूल में भरती हो कर सन् १८८४ में मेट्रोफ्यलेशन परीक्षा साथ प्रसिद्ध पंडितवर गट्टलाल जी के यहाँ संस्कृत और प्राकृत पढ़ते रहे। सन् १८८६ ई० में विल्सन कालेज में इन्होंने प्रीवियस परीक्षाकी पढ़ाई प्रारंभ की। पर शरीर को अस्वस्थता के कारण परीक्षा के पूर्व ही अपने ग्राम रोहिड़े को लाट पाए । फिर कुछ काल के पोछे बंबई जाकर प्राचीन लिपियों के पढ़ने और प्राचीन इतिहास के अध्ययन में इन्होंने अपना दो वर्ष पास को। इसके साथ