पृष्ठ:हिंदी कोविद रत्नमाला भाग 1.djvu/१९८

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( १०८ ) अपनी लिखी हुई कुल पुस्तकों का स्थत्व सभा के नाम वसीयत कर गए हैं। बावू राधाकृष्णदास आजीविका के लिये अपने एक मित्र के साझे में टोकेदारी का काम करते थे। हाल में जो कई एक अच्छी अच्छी इमारतें काशी में बनी हैं वे आप ही के प्रबंध से बनी हैं। आपके नाम से चौखम्भे में एक दुकान भी चलती है। आप राधा- वल्लभीय संप्रदाय के हद वैष्णव थे। परंतु पास्तव में किसी मतमतांतर से द्वेप नहीं रखते थे। पाप एक बड़े सच्चरित्र, शोल स्वभाव और मिलनसार पुरुप थे । क्रोध और कुचाल का तो माप में लेश मान भी न था। सर्व साधारण में प्रापका जैसा प्रादर था वैसा हो जातिवालों में भी था। काशो के अग्रवाले मात्र आप की बात मानते थे वरन् यों कहना चाहिए कि एक प्रकार से प्राप. अग्रवाल-समाज के चौधरी थे । इनका देहांत ४२ वर्षको अवस्था में तारीख २ अप्रैल सन् १९०७ को हुमा ।