पृष्ठ:हिंदी कोविद रत्नमाला भाग 1.djvu/२०४

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(३८) टाकुर गदाधरसिंह। VEVM कुराधरसिंह का संबंध चोरी कनोज राजवंश ठा से है। चंदेल क्षत्रिय हैं। जब मुग़लों ने मारे Elena को राजधानी बनाया तब इनके पूर्व पुरुष कोज बोरकर शियराजपुर प्राबसे, शियराजपुर से यया समय तीन राजकुमार गंगागंज, सड़ी और वेनीर मा वसे । सचेंड़ो कानपुर से १३ मील कालपी की सड़क पर है। यहाँ पर उन लोगों ने एक किला बनवाया जिसके चंडहर अब तक पर्तमान हैं। सड़ी शतचंडी का प्रपत्रंश है। इनके पूर्व पुरुषों ने यदी सीरचंदी को पाराधना को थी इसीसे यह नाम पड़ा। इनके पूर्व पुरुषों का पेशा सिपाहगरी था। ये लोग पहिले सवारी मनसबदार थे। प्रम अंगरेजी सैनिक सेया में ठाकुर साहब तीसरी पीढ़ी में हैं। इनके पिता का नाम ठाकुर दरियापसिंह सर वहा- दुरथा।येयंगाल को पांचवों नेटियरफंट्री में सूर्यदार थे। सन् १८३४ ईसघो में ये सेना में भरती हुप और १८७८ में पेंशन ली । इस ४४ वर्ष की सेवा में इन्होंने काबुल, कंधार, मुदकी, जजनी, फ़ोरो ज़शहर, सुघराय, सौताल मादि लड़ाइयों में काम किया। सन् ५० के बलवे के समय ये घर पर छुट्टी लेकर पाप हुए थे। अपनी सार पर आपदा को देख कर घर न रह सके। चट अपनी पल्टन को लौट गए । इस समय इनको बागी होने के अनेक प्रलोभन दिए गए, पर ये अपने स्वामित्रतपरहदा रहे। सन् १८६९ ईसवी में इनकी पल्टन बनारस में थी। वहीं उस वर्ष के अक्टूबर मास में ठाकुर